खास कलम : राघवेंद्र शुक्ल
भीड़ चली है भोर उगाने हांक रहे हैं जुगनू सारे, उल्लू लिखकर देते नारे, शुभ्र दिवस के श्वेत ध्वजों पर कालिख मलते हैं हरकारे। नयनों के परदे ढंक सबको मात्र…
भीड़ चली है भोर उगाने हांक रहे हैं जुगनू सारे, उल्लू लिखकर देते नारे, शुभ्र दिवस के श्वेत ध्वजों पर कालिख मलते हैं हरकारे। नयनों के परदे ढंक सबको मात्र…
दोहा भूख, गरीबी, बेबसी, पीड़ा औ संत्रास। यही आज उपलब्धियाँ, कृषक-जनों के पास।। नई सभ्यता ने जने, ऐसे आज उलूक। संस्कृति के नभ पर रहे, मुख ऊपर कर थूक।। जबसे…
कुण्डलियां जिनकी कृपा कटाक्ष से, प्रज्ञा, बुद्धि, विचार। शब्द, गीत, संगीत, स्वर, विद्या का अधिकार॥ विद्या का अधिकार, ज्ञान, विज्ञानं, प्रेम-रस। हर्ष, मान, सम्मान, सम्पदा जग की सरबस। ‘ठकुरेला’ समृद्धि,…
पुस्तक समीक्षा : सवा लाख की बाँसुरी – सत्यम भारती ‘दर्द, विरह, आँसू, घूटन अगर न होते मित्र, तो फिर कवि होता नहीं दीनानाथ सुमित्र ।’ स्वभाव से अक्खङ, बातों…
मिट्टी में जडे़ं कसीदे कारी वाले गमलों में आश्रय देकर इतरा रही है अपनी सम्पन्नता पर तुम्हारी सोच । मेरी हरी भरी डालियां खिला खिला यौवन देखकर तन जाती है…
वो चालीस मिनिट – मधु सक्सेना तेजी से चला जा रहा था थ्री व्हीलर । उतनी ही तेजी से मीठी के विचार ।आज साथ मिला कितने दिनों के इंतज़ार के…
पारिवारिक विघटन और हिंदी महिला उपन्यासकार पितृसत्तात्मक परिवार की जिस संरचना और स्वरूप को हमने अब तक समझा है उसके संदर्भ में महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में पारिवारिक विघटन की…
1 हद से भी बढ़ जाएंगे तो क्या करोगे चांद पर अड़ जाएंगे तो क्या करोगे इस क़दर आवारगी में दिल लगा है हम कभी घर जाएंगे तो क्या करोगे…
(1) जितने लोग पढ़ेंगे पढ़कर, जितनी बार नयन रोयेंगे समझो उतनी बार, गीत को लिखने वाला रोया होगा। सदियों की अनुभूत उदासी यूँ ही नहीं कथ्य में आयी आँसू आँसू…