विशिष्ट कहानीकार :: श्यामल बिहारी महतो

मंसूबा           –  श्यामल बिहारी महतो उन दिनों पत्नी के साथ मेरा भारत चीन जैसा ताना तनी चल रही थी । तभी मैने पाकिस्तान जैसा एक…

विशिष्ट ग़ज़लकार :: विजय कुमार स्वर्णकार

1 अपने मित्रों के लेखे- जोखे से हमको अनुभव हुए अनोखे -से हमने बरता है इस ज़माने को तुमने देखा है बस झरोखे से ज़िन्दगी से न यूँ करो बर्ताव…

खिड़की सिखाती हैं मुझे  अंदर रहते हुए कैसे देखा जाता है बाहर :: चित्तरंजन

खिड़की सिखाती हैं मुझे अंदर रहते हुए कैसे देखा जाता है बाहर               – चित्तरंजन प्रगतिशील चेतना को समर्पित यह कविता एक बेचैन मनोभाव की…

विशिष्ट गीतकार :: हीरालाल मिश्र मधुकर

1 थक गई संवेदना को  पंख दे दो प्यार के खिलते कँवल कुम्हिला  रहे हैं । आँख का पानी सिमटता जा रहा है  अंकुरित  श्रद्धा शिथिल होने लगी है समय…

ख़ास कलम :: मधुकर वनमाली

बरसाणे की बावरी बरसाणे की बावरी,राधा सुंदर नाम। धवल सरीखी दूध जो,मीत मिला घनश्याम।। वनमाली यह सोचते,अलग हुआ जो रंग। हंस मिले ज्यों काग से, नहीं जँचेगा संग।। मैया जसुमति…