श्रद्धांजलि :: अमन चांदपुरी :: बहुत बहुत याद आओगे भाई -शुचि ‘भवि’

श्रद्धांजलि :: अमन चांदपुरी :: बहुत बहुत याद आओगे भाई – शुचि ‘भवि’

आभासी दुनिया में अमन चाँदपुरी मुझसे भाई बनकर मार्च 2017 में डॉ हरि फ़ैज़ाबादी जी के फ़ोन से बातचीत के बाद कुछ यूँ जुड़े कि आज उनसे रूबरू बिन मिले भी ये आभास हो रहा है कि जो सितारा सबसे अधिक चमकीला था वो कहाँ चला गया चमकने हमें यूँ तीरगी देकर।
अमन के ही शब्दों में कहती हूँ-
तीरगी से बच गए तो रौशनी लड़ने लगी
क्या बताऊँ मुझसे मेरी ज़िंदगी लड़ने लगी
दीदी कहता था वो मुझे,उसे उसके लेखन से ख़ूब जाना था मैंने।आज पूछना चाहती हूँ अमन से ही कि क्यों लिखे थे अमन तुम ये झूठ —
अपनी लाश का बोझ उठाऊं, नामुमकिन
मौत से पहले ही मर जाऊं, नामुमकिन
अमन की ये पंक्तियाँ शायद हम सभी के लिए हों-
दश्त में प्यासी भटक कर तश्नगी मर जाएगी
ये हुआ तो ज़िंदगी की आस भी मर जाएगी

दुनिया छोड़ के जिस दुनिया में आया हूँ
उस दुनिया से बाहर आऊँ, नामुमकिन

अमन ने 22 साल से भी कम उम्र में शायरी का वो मुक़ाम हासिल किया है जो शायद 50 साल में भी लोग छू नहीं पाते
मैं जिसे अपना समझता था, उसी ने छीन ली
ज़िन्दगी से ज़िन्दगी ख़ुद ज़िन्दगी ने छीन ली

अमन देवनागरी और उर्दू ,दोनों ही लिपियों का बादशाह रहा।सोचती हूँ आज क्या अमन को मालूम था कि उसे जल्दी जाना है जो उसने इतनी कम उम्र में इतना गहन लेखन किया? जिस उम्र के बच्चे मौज मस्ती में लीन रहते हैं उस उम्र में वो साहित्य का एवेरेस्ट चढ़ने की बात करता था,पाठ्यक्रम में आने की बात करता था, मरने के बाद अमर होने की बात करता था।
अमन तुम्हें कहीं जाने नहीं दे सकते हम साहित्य के बाशिंदे

तुम्हारे ही शब्दों में

‘अमन’ तुम्हारी चिठ्ठियाँ, मैं रख सकूँ सँभाल।
इसीलिए संदूक से, गहने दिये निकाल।।

बहुत बहुत बहुत याद आओगे भाई,

जिसका जितना रिश्ता है
वो उतना रोया
मुझको इतना बतलाना
कौन नहीं रोया

नमन तुम्हें अमन
विनम्र श्रद्धांजलि
– शुचि ‘भवि’

 

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