समकालीन उर्दू हिंदी ग़ज़ल का नया नाम अशोक मिज़ाज बद्र

डॉ हरी सिंह गौर केंद्रीय विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा ,समकालीन ग़ज़ल और अशोक मिज़ाज,शीर्षक से परिचर्चा एवं काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य वक्ता के रूप में भोपाल से उस्ताद शायर जनाब ज़फर सहबाई, म, प्र,उर्दू अकादमी के शायर और आलोचक जनाब इक़बाल मसूद,आलोचक और शायर जनाब ज़िया फ़ारूक़ी ,हिंदी ग़ज़लकारों में श्री विजय वाते और डॉ, वर्षा सिंह ने अशोक मिज़ाज बद्र की शायरी पर अपने वक्तव्य दिए। इस अवसर पर इक़बाल मसूद ने कहा कि समकालीन ग़ज़ल में तो बहुत से नाम हैं, जिनमें डॉ बशीर बद्र और दुष्यंत भी हैं।और इसी सिलसिले का एक नया नाम है अशोक मिज़ाज बद्र।जिसने ग़ज़ल की लशकारे मारती हुई सरज़मीन पर अपना परचम बुलंद किया है।यह परचम बरसात के बाद निकलने वाली धनक की तरह धनक रंग है।इनकी शायरी मिट्टी में गुंधी हुई शायरी है।इनके यहां जो भी नयापन है वो इनका अपना है,उधार का नहीं है,न मांगे का उजाला है।
उस्ताद शायर ज़फर सहबाई साहब ने कहा कि अशोक मिज़ाज की ग़ज़ल को हिंदी या उर्दू अदब में नज़रंदाज़ करना नाइंसाफी होगी। वो ग़ज़ल और समाज की सारी रिवायतों उसूलों और फ़न के पासदार है।उनकी शायरी दिल को छू लेती है,और उस से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता।वो हिंदी और उर्दू अदब में बराबरी से मक़बूल हैं।उन्होंने अशोक मिज़ाज का एक शेर भी कोट किया।
लहू का रंग गहरा और हल्का हो भी सकता है,
मगर ये एक जैसे हैं, तेरे आंसू, मेरे आंसू।
ज़िया फ़ारूक़ी साहब ने कहा कि अशोक मिज़ाज ने ये बात गांठ बांध ली थी कि ग़ज़ल उस ज़ुबान में कही जानी चाहिए जो उर्दू में छपे तो उर्दू की और हिंदी में छपे तो हिंदी ग़ज़ल कहलाये।अपने समाजी सरोकार और अपने मुताला की रोशनी में उन्होंने ने जो शेरी पैकर तराशे हैं वो खूबसूरत भी हैं और पुरअसर भी।
उन्होंने भी एक शेर कोट किया।
में बोलचाल की भाषा में बात करता हूँ,
मेरी ज़ुबान को इल्मी ज़ुबान मत समझो।
हिंदी ग़ज़लकार विजय वाते ने कहा कि अशोक मिज़ाज सम्प्रेषण के मामले में बहुत सजग हैं।अशोक ने ये बात अपने शेर में कही भी है,
में अपने शेरों में इतना ख़याल रखता हूँ
कहा गया है जो उनमें तुझे सुनाई दे।
यानी शेर की कामयाबी यही है कि जो उसमें कहा गया है वो श्रोता या पाठक को भी समझ में आयेl
दूसरी खूबी ये की वो हमेशा नयापन तलाश करता है।उसका ये शेर में अक्सर कोट करता हूँ,
इक्कीसवीं सदी की अदा कह सकें जिसे,
ऐसा भी कुछ कहो कि नया कह सकें जिसे।
अशोक मिज़ाज ने बहुत अच्छे अच्छे शेर कहे हैं।
हिंदी की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल कार डॉ, वर्षा सिंह ने कहा कि अशोक मिज़ाज उर्दू के छंदों में तो महारत के साथ शेर कहते हैं लेकिन हिंदी ग़ज़ल में भी पूरी ताक़त के साथ शेर कहते हैं , और कथ्य के मामले में भी सजग हैं, और उनकी शायरी में आज के दौर की सामाजिक, राजनैतिक और आम ज़िन्दगी की आहटें साफ सुनाई देती हैं। वो उर्दू के साथ साथ हिंदी ग़ज़ल के भी सबसे सशक्त हस्ताक्षर हैं।उन्होंने अशोक मिज़ाज के शेर कोट किये,
बदल रहे हैं यहां सब रिवाज क्या होगा,
मुझे ये फ़िक्र है कल का समाज क्या होगा।
दिलो दिमाग के बीमार हैं जहां देखो,
में सोचता हूँ यहां रामराज क्या होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे हिंदी विभागाध्यक्ष श्री आनंद त्रिपाठी ने कहा कि अशोक मिज़ाज ने हिंदी और उर्दू दोनों क्षेत्रों में अपना परचम लहराया है ये सागर के लिए गौरव की बात है।

 

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