हृदय से निसृत साधना का गीत ‘बात करती शिलाएं’
- कान्ति शुक्ला
काव्य सृजन जीवन का स्पंदन है। जब यही स्पंदन सहजता और सरलता से मुखरित हो जाए तो कविता सृजित होती है। किसी कथ्य को तथ्यपूर्ण संवेदना से व्यक्त करने का कौशल ही कवि का चातुर्य है। यथार्थ की गूंज है। काव्य की रूप सृष्टि के लिए लाक्षणिक होना पड़ता है । आंतरिक अनुभूतिमय अभिव्यक्ति का अभिनव निरालापन रचना को ग्राह्य बना देता है। रचना की केवल आकृति अथवा फोर्म देखकर उसकी प्रेरणा की कल्पना नहीं की जाती, कवि आंतरिक जीवन से स्पंदन ग्रहण कर रहा है या केवल बुद्धि विलास है। अभिव्यक्ति के लिए व्यक्त का आधार ग्रहण करना पड़ता है। कल्पना लोक में विभोर सांसारिक क्लांति खोकर समष्टि से चेतन और रागात्मक स्थापित कर सके ऐसी संप्रेषणीय भाषा शैली और शिल्प को आत्मसात कर परख की संचेतना, निरीक्षण क्षमता तथा विषय को गंभीरता से समझ कर उसके मूल पर पहुँचने के लिए आवश्यक तार्किकता की नीलम श्रीवास्तव जी के गीत संग्रह में.अद्भुत विशिष्टता है, तत्पर जागरूकता है। अपने अर्जित अनुभवों और अपने भाव बोध से समाज की प्रासंगिक अनुभूतियों को शब्द देने की क्षमता है जिनका एक सचेतक मुखर स्वर है।
काव्य- अभिव्यक्ति के अन्तर्गत गीति- भावना सार वस्तु है। स्वानुभूति, गेयत्व और कोमल भाव की सघनता जिस कविता में एक साथ पाई जाए , वह गीति- काव्य है। उक्त तीनों विशेषताएं यथार्थतः गीत की आभ्यन्तर और बाह्य विशिष्टताएं हैं। गीत की आभ्यन्तर विशेषता, उसका मुख्य तथ्य यही है कि उसके भीतर आत्मा की- अपनी निजी अनुभूति प्रगट हो। वर्णन चाहे किसी वस्तु का हो पर गीत के रूप में वह वर्णन सामान्य कल्पनागत न होकर कवि की अपनी अनुभूति को आत्मसात कर व्यापक और ह्रदयग्राही हो जाता है और वह न केवल वस्तु की आत्मा और विशेषताओं का परिचायक होता है प्रत्युत उसमें कवि की आत्मा , उसकी भावनाएं प्रतिबिंबित होतीं हैं । आत्मानुभूतियों का यह प्रकाशन कवि की अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषताओं के आधार पर होता है। कवि की भावना मुख्यतः सबल होती है जो हमारी प्रेरणाओं और अनुभूतियों को जाग्रत कर देती है, उसकी शुचि पारदर्शी दृष्टि वस्तु , जीवन,जगत के भीतर नवीन तथ्य खोज लेती है जिसे वह विविधवर्णी कल्पनाओं के आश्रय द्वारा सुख-दुख के रंग चढ़ाकर व्यक्त करता है जो स्वाभाविक गतिमय गेय गीत बनकर कोमलता से हमारी रस संक्षिप्ति को प्रेरित और कल्पना को सजग करता है।
गीत संग्रह ‘ बात करती शिलाएं’ आभ्यांतरिक साधना और विचारों की सांस्कृतिक दृष्टि का ऐसा दर्पण है जिसमें युगानुकूल सामयिकता विद्यमान है तो मानव जीवन के विविध पहेलुओं की विवेचना है । भाव, विचार और अनुभूतियों के सफल प्रकाशन के लिए भाषा का व्यापक रूप है और मानव मूल्यों के मनोविज्ञान का स्निग्धतम स्पर्श है जिसमें गेयता है, भावोद्रेक है, छंदानुशासन है । मानवीय सम्बंधों को लेकर चिंता और चेतना है ।गीतों में सामयिक सामाजिक और सांस्कृतिक चिंतन अभिप्रेत है , विसंगतियों और विषमताओं के प्रति क्षोभ है, प्रकृति के क्षरण की चिंता है । अध्यात्म, राष्ट्र प्रेम और महान प्रेरक विभूतियों के प्रति श्रद्धा और सात्विकता है । नीलम जी का आशावादी दृष्टिकोण गीतों को जीवंत और सार्थक कर रहा है ।
सामाजिक सरोकारों से जुड़ा चिंतन कल्पनाओं के माध्यम से सत्यान्वेषण के लिए यथार्थ और आदर्श के मध्य कवियत्री के मन को उस भाव बोध की तलाश है जिसकी समाज को आवश्यकता होती है ।
यह भी निर्विवाद सत्य है कि छंद हमारी संस्कृति के अटूट अंग , गति और रागात्मक संस्कार हैं और स्वाभाविक रस- निष्पत्ति के लिए हमारे अनेकानेक सनातन छंद चाहे वह वर्णिक हों या मात्रिक गीतों के सृजन के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं जिनको आधार मान भाषा शैली और संवेदनात्मक धरातल पर सुंदर सटीक गेय काव्य रचा जा सकता है-
इस तथ्य से नीलम जी भली भाँति अवगत हैं और एक दक्ष छंद साधिका होने के नाते नीलम जी ने अपने गीतों में विविध छंदों का प्रयोग अपार कौशल से किया है।
ममता और समर्पण को सहजता से व्यक्त करतीं पंक्तियां माँ के विराट व्यक्तित्व को कुशलता से दर्शा देतीं हैं-
“आशीष तुझे मेरी अंशी
तू नव अक्षय वरदान बने ।
जगती के कल-बल-छल से रहित
तू माँ की अमर संतान बने ।”
संवेदनात्मक आंतरिक अनुभूति की अभिव्यक्ति सरल और सहज भाषा में समरसता के अर्थ गांभीर्य का तत्क्षण बोध करा देती है जो एक महती सार्थक संदेश देने में सक्षम है-
” छोड़ भला अवलंब आस का क्यों जीवन निस्सार करें ।
प्रेम,दया, विश्वास, क्षमा से स्वप्न सभी साकार करें।
नित्य नये प्रतिमान गढ़ें हम, हार हमारी जीत बने।”
नीलम जी के गीतों में मनमोहक अभिव्यंजना है । साहित्य में एकांगी दृष्टिकोण का स्थान नहीं यह नीलम जी ने सिद्ध किया । अपने रचना संसार में वैयक्तिक अनुभूतियों से लेकर नैयकि्तक संवेदन की अभिव्यंजना को साकार किया है । गीतों में मानव मूल्यों का कोमल स्पर्श है ,नारी-मन की भावुकता और गरिमा का प्रेरक विमर्श है जो मौलिक विशिष्ट और नवीन प्रतिबद्धता का पक्षधर है । प्रभावोत्पादन के लिए पुनरुक्ति का सफल प्रयोग भी है जो काव्य प्रवाह में बाधक नहीं ।
संवेदनात्मक आंतरिक अनुभूति की अभिव्यक्ति सरल और सहज भाषा में समरसता के अर्थ गांभीर्य का तत्क्षण बोध करा देती है-
“बात करती हैं शिलाएं।
मुस्कराती हैं दिशाएं।”
प्रांजल रूप परिग्रह देखिए जिसमें हृदय के राग की छाया स्पष्टतः दृष्टिगोचर हो रही है-
“ज़िंदगी बन गई है अमा-यामिनी
भावना भी हृदय में मचलती नहीं ।”
प्रेम के शाश्वत मूल्य, अनुभूत यथार्थ, निरीक्षण क्षमता, संवेदनशीलता और कल्पनाशीलता कवियत्री की अभिव्यक्ति को विशिष्ट बना देते हैं-
” हो सके तो प्यार देना ,प्यार का अधिकार देना।
व्यग्र चिंतित त्रस्त जन को, स्नेह का उपहार देना।”
वर्तमान के प्रति सूक्ष्म पर्यवेक्षण और विसंगतियों हेतु कवि मन कितना सजग और संवेदनशील है –
” विकल मन कैसे धारे धीर ।
त्रास बढ़ाए जन-जीवन की, देश-दशा गंभीर।”
अथवा
“हुई क्यों, आज नियति प्रतिकूल।
सोच रहा व्याकुल मानव-मन, की हमने क्या भूल ।”
जब कवि की कविता आचरण में ढ़ल जाए तो अमिधा की शक्ति उद् बोधक हो उठती है-
“धीरे- धीरे संघर्षों से आँख मिलाना सीख लिया।”
प्रतीकों और लक्षणा के सहारे अन्तर्भावनाओं की भाव सूक्ष्मता का आभास अपने कला सौंदर्य से विमुग्ध कर जाता है –
” विपिन में दुखों के भटकते-भटकते
कहीं बैठ जाने को जी चाहता है ।”
प्रकृति के भीतर जो भी स्पन्दन और क्रिया-कलाप हैं- वे सभी संकेत उद्दीपन के रूप में विशेष बन जाते हैं-
” हो चली यौवना अब शरद-यामिनी
रूप ने मद भरा जाम छलका दिया ।”
भावना की तीव्रता, पुंजीभूत साहस, कर्तव्य-बोध और देशप्रेम से परिपूरित गीत में कवियत्री की अपनी भावना ह्रदयग्राही हो उठती है-
” प्रभो आपने जो दिया है ये जीवन
हरेक सांस इसकी , वतन के लिए हो।”
एक भावुक निरीक्षक और दृष्टा के रूप में अपनी जड़ों से जुड़ने की आकुल क्रियाशीलता को संजोकर जब ह्रदय का विश्वास और गहन पारदर्शी अनुभूति सांस्कृतिकता धारण कर स्वाभाविक साधक बन जाती है तब अनायास ऐसा गीत सृजित होता है-
” चलो अब चलें गाँव की ओर ।
जहाँ लुटाती रात चाँदनी, मंगल गाता भोर ।”
समग्रतः संग्रह ‘ बात करती शिलाएं’ के शिल्पगत वैविध्य से सुसज्जित, विविधवर्णी कल्पनाओं से अभिप्रेरित सभी गीत ह्रदय से निसृत साधना की व्यापक रूपमयता के अनमोल गीत हैं जो गीत- अनुरागियों को निःसंदेह प्रभावित करने की अपूर्व क्षमता रखते हैं और काव्य जगत में चर्चा का महत्वपूर्ण बिंदु बनने का सामर्थ्य लेकर नवीन क्षितिज को स्पर्श करते हैं। कहीं कहीं गीतों में उर्दू शब्दों का प्रयोग सहज और स्वाभाविक रूप से अनायास हुआ है जो खटकता नहीं क्योंकि नीलम जी कुशल ग़ज़लगो भी हैं तो गंगा-जमुनी तहज़ीब का अंदाज़े- बयां उनकी अतिरिक्त विशिष्टता है। कथ्य की अवधारणा में कलात्मकता और सूक्ष्मता के साथ गीतिमत्ता का समावेश, उत्तम शब्दसंयोजन और अनुभूति की स्वाभाविक तीव्रता है । लाक्षणिक शब्दों के प्रयोग गीतों के सौन्दर्य में वृद्धि कर रहे हैं ।
निःसंदेह कवि की भावना सबल होती है जो हमारी प्रेरणाओं और अनूभूतियों को जाग्रत कर देतीं हैं । कवि की शुद्ध , शुचि और पारदर्शी दृष्टि किसी वस्तु के भीतर ऐसे भाव खोज लेती है जो पाठक अथवा श्रोता को सर्वथा नवीन, सत्य और तथ्यपूर्ण लगते हैं । इस स्वानुभूति का साथ देती है सूक्ष्म कल्पना जो सम्बन्धित वर्णन को इतना आत्मसात कर लेती है कि पाठक या श्रोता की भावनाएं उससे जुड़कर अपनी सी हो जातीं हैं – यही चेतनामूलक सजगता कवियत्री नीलम श्रीवास्तव की प्रतिभा और अन्तर्दृष्टि है ।प्रस्तुत गीत संग्रह उनके परिपक्व और समर्पित रचना-कौशल का परिचायक है । मुझे विश्वास और गहन आश्वस्ति है कि गीत संग्रह ‘ बात करती शिलाएं’ नीलम श्रीवास्तव जी को सुयश दिलाने में सक्षम सिद्ध होगा । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
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पुस्तक समीक्षा
‘ बात करती शिलाएं’ ( गीत संग्रह )
गीतकार – डॉ. नीलम श्रीवास्तव
प्रकाशक – समीक्षा प्रकाशन
समीक्षक – कान्ति शुक्ला, भोपाल