श्रद्धांजलि अमन चांदपुरी :: ग़ज़ल और कुंडलिया – अवधेश कुमार आशुतोष
ाजनता हूँ लौटकर आना तुम्हें फिर से अमन है
आंसुओं की धार से भींगा भला क्यों हर नयन है
तुम छुड़ाकर हाथ सबसे,दूर नजरों से हुए हो
यह नहीं तुम जानते,सबको लगी तेरी लगन है
आ गयी कैसी खिजाँ ये,अब बहारें जा चुकी हैं
फूल में काँटे उगे क्यों,लुट गया सारा चमन है
गीत गजलों में हमेशा मुस्कुराओगे सदा तुम
दे रहे तुमको धरा हम और लो सारा गगन है
चाहनेवाले तुम्हारे ढेर दुनिया में अमन है
पेड़ पौधे बाग, पर्वत,ये नदी,मधुरिम पवन है
@ अवधेश कुमार आशुतोष
कुण्डलिया
तेरा जाना लोक से,बहुत खल रहा यार।
इतनी जल्दी चल दिए,जीत सभी का प्यार।।
जीत सभी का प्यार,अमन ने जैसे जीता।
उर में था साहित्य,समाहित दिल में गीता।।
गीत,गजल अरु छन्द,सभी का दिल में डेरा।
था मुख पर नित हास, अरे क्या कहना तेरा।।
– अवधेश कुमार आशुतोष