मोद का तिलस्म
धरती गांव की बहुत खुश है। और हर्षित हैं, सारे खेत – खलिहान।
समझ नहीं आया तो बूढ़े बरगद ने धरती से पूछा, “आखिर किस सौभाग्य पर इतरा रहीं! इतनी खुश क्यों हो?”
“दिख नहीं रहा, सारे बाल – बच्चे परदेश से लौट रहे। कितने हर्षाकर! और कान पकड़ कर मेरे गुण गा रहे। आखिर समझ आ ही गया उन्हें कि आफत आने पर मैं ही तो आसरा हूँ, मन और उदर के लिए भी। ” उत्तर मिला।
“यही सोच कर मुदित हूँ कि कितना आह्लाद होगा जब मेरे लाल सभी, मेरे आंचल में सिमटे रहेंगे। “, फिर इतना कहते हुए धरती मानो अपने हर्ष के सम्मोहन में लीन हो गयी।
इधर बूढ़े बरगद ने ठठाकर हँसते हुए कहा,” कितनी भोली है तू भी! मैं तो इन आदमजातों की फितरत खूब पहचानता हूँ। चकाचौंध देखते ही तेरे धूसर आंचल पर जूतियां घिसते चले जाएंगे। ”
धरती के मोद का तिलस्म तो छन्न से टूट ही गया था, कितनी ही स्मृतियों को जेहन में दोहराकर।
विशेषज्ञता
सुमन फुर्सत पाकर आनलाइन कार्यशाला में उपस्थित हुई और अब तक आई लघुकथाएं पढने लगी।नयी – नयी थी इस दुनिया में, लिहाजा गहन ध्यान से पढना बेहद जरूरी लगता था उसे, समझ बढ़ाने के लिए।
उसने अबतक की कथाओं के लिए अपने पाठक मन की टिप्पणियों को लिखना शुरू किया,
“सर, यह लघुकथा तो लग नहीं रही, घटना का विवरण लग रहा।”
“दीदी, इतनी भूमिका की जरूरत तो नहीं थी। कुछ पंक्तियां कम हो सकती थीं।”
“आदरणीय, क्या खूब लिखा है आपने! वाह! बहुत करारी चोट करती कथा।”
“महाशय, संवाद रूचिकर हैं, हास्य भी है, सबक भी, मगर लघुकथा कहाँ दिखी! ”
इस बीच आई एक कथा को पढ ही रही थी कि एक वरिष्ठ रचनाकार जिनपर टिप्पणी की थी उनका संदेश उगा,” आदरणीया, बड़ी विशेषज्ञता दर्शाकर कमेंट प्रेषित कर रहीं। क्या आप लिख कर दिखा सकती हैं, एक अच्छी लघुकथा? ”
सुमन,” क्षमा कीजिए सर! मैं बस पढ़ – समझ सकती। मैं कथा लिखती तो नहीं ।”
“जब स्वयं अच्छी कथा लिख नहीं सकतीं तो ऐसे कैसे टिप्पणी कर सकतीं!, जबाव मिला।
” कम-से-कम सवाल उठाने के पहले अपनी और सामने वाले की क्षमता और रूतबा देख लेना चाहिए था।” एक दूसरे वरिष्ठ ने तपाक से जबाव लिखा।
जभी एक और ने लिखा, “आजकल का जमाना ही खराब है, सीखना कम, छेद निकालकर अपने को ज्ञानी समझना, ज्यादा।”
अब सुमन की बारी थी, “आदरणीय, क्या आप सुंदर जमाना बना सकते हैं? अगर नहीं तो फिर …. ”
और इसके साथ ही सारी मचमच थम चुकी थी। अब पटल शांत था।
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परिचय : स्मिता श्री की लघुकथाएं कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं. ये फिलहाल बेगूसराय में रहती हैं और निरंतर लेखन में सक्रिय है.
बहुत बहुत धन्यावाद आपका, भावना जी