लघुकथा :: संतोष दीक्षित
अंकुश – संतोष दीक्षित साहेब सरकारी संत थे। एक सरकारी मठ के प्रधान थे।उन्हें खाने के बाद फल खाने की आदत थी। एक दोपहर पेट भर…
अंकुश – संतोष दीक्षित साहेब सरकारी संत थे। एक सरकारी मठ के प्रधान थे।उन्हें खाने के बाद फल खाने की आदत थी। एक दोपहर पेट भर…
योग के साथ, घर में योग कुमार कृष्णन कोविड-19 महामारी के बीच लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं। इस अप्रत्याशित समय में योग…
मौन को शब्द देने की संवदेशीलता मौत का जिंदगीनामा मनीष शुक्ला कहते हैं कि स्त्री, संवेदनशीलता का ईश्वर द्वारा दिया गया सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। और उस पर यदि वह रचनाकार…
कला में चिंतन का दृष्टि बोध डा.अफ़रोज़ आलम एक बुकलेट के रूप में अपने सुंदर कलेवर में आकर्षित करती है ये छोटी सी पुस्तक। इसके अंदर की सामग्री में…
सुनो स्त्रियों आज महालया का शुभ दिन है और आज तुम्हारे नयन सँवारे जाने हैं तुम्हें कह दिया गया था सभ्यताओं के आरम्भिक दौर में ही यत्र नार्यस्तु पूज्यंते…
लॉकडाउन – डाॅ. सुशांत कुमार मुनिया के बियाह वैशाख में बा, एहि ख़ातिर एकर बाबू दिल्ली कमाए गेल रहनए बिना दाना.पानी के दू दिन से घर में बंद बारन। पता…
1 हमें अक्सर ये दुनिया अजनबी मालूम होती है बड़ी ही अनमनी सी ज़िंदगी मालूम होती है तबस्सुम में भी कोई बेबसी मालूम होती है निगाहों में सिसकती …
1 मन मरुथल तन हुआ कैक्टस देख अजब दुनियाँ की रीत ऐसी भावदशा में कोई कैसे लिखे सुहावन गीत आफत आयी, उठा बवंडर भीतर संशय और भरा डर कजरी, मेघ-मल्हार…