विशिष्ट कवयित्री :: भावना सिन्हा

धान रोपती औरतें

धान रोपती औरतें

आँचलिक भाषा में

गाती हैं जीवन के गीत

अवोध शिशु की तरह

पुलक उठता है खेत का मन

उनके हाथों के स्पर्श से

 

बड़े जतन से

खुरदुरे हाथों से रोपती हैं धान

पानी में , कीचड़ में

 

साथ में रोपती हैं

भात , रोटी , कपड़े

और टूटे छप्पर के स्वप्न

 

दिन भर मौसम के तेवर पीठ पर झेलतीं

शाम चूल्हे की आग में सुलगतीं

 

धान रोपती औरतें

श्रम की साधना में लीन

कभी कहती भी नहीं

झुके – झुके

दुख रही है रीढ़

अब सिर्फ़ सोना है उन्हें

 

भूख , रोटी , बच्चे और मर्द

सेवा और प्यार के घेरे में

क़ैद है उनकी दुनिया

 

धान रोपती औरतें

गायव हैं

अर्थशास्त्र के पन्नों से

जैसे- भूगोल के नक्शे से

कोई बस्ती

नगरीय विस्तार के पदाघात से .।

 

कब सोचा था

मैं बाजार जाती हूँ

लेने …..

अपनी पसंद की कोई चीज़

 

तो उस चीज़ के

विकल्प में मुझे

ऐसी अनेकों  चीजें दिखाई जाती हैं

जिनके विषय में

मुझे  कुछ  मालूम नहीं होता

 

मैं असमंजस में पड़ जाती हूँ

 

इससे पहले  कि–

ले सकूँ कोई  निर्णय

उन चीज़ों के बारे  मुझे

अधिक से अधिक

जानकारियां दी जाती हैं

 

अब…

मैं …

.उन चीज़ों पर गौर करने लगती हूँ

 

ये चीजें इतनी चिकनी  होती हैं

कि सरलता से

दिल में अपनी जगह बना लेती हैं

 

और देखते-देखते

अधिक उपयुक्त प्रतीत होने लगती हैं

 

मैं इन चीजों को  लेकर

खुशी खुशी  लौट आती हूँ

 

पसंदीदा चीज़ों के बारे में

कब सोचा था

एक दिन …

इन्हें  नहीं  खरीद   पाने का

गम भी नहीं रहेगा   ।

 

स्त्री

दरवाजें न हों, तो

दीवारें जुड़ती नहीं आपस में

एक खुली जगह को

रहने लायक बनाता दरवाजा

 

स्त्री भी

एक दरवाजा है

जहाँ, जिन परिस्थितियों में वह रहती है

हो कर

उस जगह को

तब्दील कर देती

घर में।

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परिचय : भावना सिन्हा की कविताएं कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं.

 

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