गहन संवेदना का प्रमाण ‘देवता पाषाण के’ :: डॉ.प्रेम प्रकाश त्रिपाठी

गहन संवेदना का प्रमाण ‘देवता पाषाण के’

  • डॉ.प्रेम प्रकाश त्रिपाठी

गीतकार भाऊराव महंत का प्रथम गीत संग्रह ‘देवता पाषाण के’ गहन संवेदना का प्रमाण है। सभी गीतों का उद्गम प्रायः दर्द ही है।
अपने इस संग्रह में गीतकार भाऊराव महंत ने 94 गीत पुष्पों को एक माला में पिरोया है। ये गीत साहित्य जगत को अपनी सुरभि से सुरभीत करते रहेंगे।
इस संग्रह का प्रथम गीत ‘मैं गीतों में डूब गया हूँ’ मुझे यह कहने पर विवश करता है-

‘हर तरफ संघर्ष है पर, जूझना सीखो।
हार कर मत जिंदगीं से, ऊबना सीखो।
धार की कटुता सलिल का रोष पीने को-
गीत यह गहरे उतरकर, डूबना सीखो।।’
गीतकार भाऊराव महंत के प्रत्येक गीतों की एक-एक पंक्ति के अनेक अर्थ लगाए जा सकते हैं। गीतों को व्यापार और अर्थोपार्जन का आधार बनाने वालों ने समाज का अहित ही किया है और टूच्चे रचनाकार कविराज बन गए। जो भाऊराव महंत के निशाने पर हैं।
महंत का स्वभाव रहा है सत्य का पक्ष लेना और असत्य का परिहार करना। इनके गीतों के कथ्य के साथ न्याय करने की पूरी तत्परता है। महंत ने अपने अनुभव चिंतन और विचारों को इन गीतों के माध्यम से सुधिजनों के सम्मुख रखा है। उनके गीतों में राग तत्व है। मानव के प्रति, समाज के प्रति, कला के प्रति, लोक के प्रति उनके हृदय में राग है। यह राग, लगाव, जुड़ाव और अपनत्व की भावना को दर्शाता है।
सीधी-सादी भाषा में अपनी व्यंजना का निर्वाह उनके लेखन की विशेषता है। व्यंजना की एक बानगी देखिए-

‘पंछियों को खाद्य सामग्री बनाना-
तक्षकों अब छोड़ दो इन आदतों को।’

गीतकार एक सामाजिक प्राणी है, जिसका समाज में घटित प्रत्येक सामाजिक, पारिवारिक राजनीतिक घटना से सीधा संपर्क होता है। इसलिए उसके गीतों में इसका दर्द स्पष्ट दिखाई देता है। वे धर्म की आड़ में छुपे अधर्मियों तंज कसते हैं-

धार्मिक चादर ओढ़े ऐसे, कई अधर्मी हैं,
बतलाते जो हम ईश्वर के, सच्चे कर्मी हैं।
योगी खुद को बतलाते हैं, पर भोगी होते।’

गीतकार भाऊराव महंत ने इस समाज में व्याप्त कुरीतियों कुप्रथाओं, विसंगतियों के दुष्प्रभाव को अपने गीतों में व्यक्त किया है। किस तरह नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है और आदमी का आचरण बदल-सा गया है। कवि लिखते हैं-

‘बेचकर ईमान; बेईमान मानव हो गया,
आज जग में आदमी का आदमीपन खो गया।
मूल्य नैतिक पुस्तकों में ही लिखे अब रह गए,
धर्म-शिष्टाचार-सच-पुरुषार्थ सारे ढह गए।’

भाऊराव महंत ने अपने गीतों में जाति-धर्म, सुख-दुख, आशा-निराशा चीख-दुत्कार, रिश्ते-नाते आदि विविध पहलुओं के यथार्थ को प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। वृद्धजनों के दुख, चीत्कार, निराशा को उन्हीं के शब्दों में देखिए-

जगनियंता ये बता दो-
वृद्ध होना शाप है क्या?

गीत संग्रह ‘देवता पाषाण के’ शीर्षक से संबंधित गीत में गीतकार ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए अनुनय-विनय के साथ ईश्वर को उलाहना देते हुए कहता है-

‘देवता भाषण के इतना बता दो
और कितने दिन शिला बनकर रहोगे।’

गीतकार भाऊराव महंत ने अपने जीवन में उतार-चढ़ाव देखे हैं। उन्होंने जो खोया, जो पाया, जो भोगा और जो महसूस किया उन्हें अपनी कलम से कागज पर उतारा है। जिंदगी के भोगे हुए यथार्थ को अभिव्यक्ति देते हुए कहते हैं-

‘रेत जैसी हो गई है जिंदगी ये
बंद मुट्ठी से फिसलती जा रही है।’

महंत के गीतों में रचनात्मकता, गीतात्मकता, संवेदनशीलता एवं दृष्टि संपन्नता है। आपके कहने का लहजा बेबाक है और दिलचस्प भी। भ्रष्टाचार पर ‘बंटाधार’ गीत में इनकी बेबाक बानगी देखी जा सकती है-

‘आज तुम्हारे कर-कमलों से,
उद्घाटन संपन्न हुए जो,
कल फिर देखेंगे उनके हम- जीर्णोद्धार!!’

महंत के गीतों में चिंतन, विसंगतियों पर प्रहार, मानव मूल्यों के पोषण के लिए करुणा है। वृद्ध होना, हार गया तो हार गया, प्रेमसार, क्रूर गरीबी, आदमी का आचरण, छोड़ दो इन आदतों को, इन गीतों में उपमा, रूपक, अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि अलंकार सटीकता से प्रयुक्त हुए हैं।

गीतकार भाऊराव महंत ने नारी के प्रति श्रद्धा रखते हुए नारियों की मानसिकता, नारी सहायक हो रही है, माँ का आशीर्वाद, जन्म दात्री श्रेष्ठ है या धाय माता इन गीतों में नारीशक्ति की व्याख्या करते हुए 21वीं सदी नारी सदी का संदेश दिया है। वे भारतवर्ष को वीरांगनाओं की धरती मानते हैं और कहते हैं-

‘ सत्य आर्यावर्त तो वीरांगनाओं की मही है।
देश के निर्माण में नारी सहायक ही रही है।’

गीतकार भाऊराव महंत ने साहित्यकारों को ‘मैंने केवल काला लिक्खा’ ‘व्यर्थ बोता जा रहा हूँ’ सृजक अब लौटिए’ तथा ‘जो समझ रखते यहाँ साहित्य की’ इन गीतों के माध्यम से बोध कराना चाहते हैं कि साहित्यकार की दृष्टि में सहित का भाव होना चाहिए अहित का भाव नहीं।
‘नौजवान देश के’ ‘हे! भारती के लाल’ ‘महाराणा प्रताप’ इन गीतों के माध्यम से देशभक्ति एवं शौर्य गाथा का संचार गीतकार ने बखूबी किया है। वे प्रचण्ड ओज के साथ हमारे सैनिकों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं-

‘ वसुंधरा प्रयाण हो व आसमान छू सको,
समुद्र साथ लाँघ वीर-सैनिकों नहीं थको।’

गीतकार भाऊराव महंत बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उन्होंने ‘जिंदगी’ ‘सुख-दुख’ ‘मेरा मन’ ‘भूख’ ‘मौन बोलो’ ‘गाँव हमारा’ ‘बंटाधार’ ‘बंधन’ ‘नौकरी लेकिन नहीं पाई सखे!, ‘उज्जवल नया विहान’ ‘खुशहाली’ ‘जीत के बाद’ ‘हार के बाद’ नामक गीतों में जीवन की ज्वलंत समस्याओं का यथार्थ चित्रण बड़े ही भावपूर्ण ढंग से किया है।
‘सूरदास इतना बतला दो’ नामक गीत में गीतकार सूरदास से प्रश्न करता है कि वे नेत्रहीन होते हुए भी बालकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन एवं वात्सल्य का कोना-कोना कैसे देखा-

बालकृष्ण की सुंदरता को,
बंद नैन से कैसे देखा।
सूरदास इतना बतला दो।

गीतकार भाऊराव महंत का मंतव्य नई पीढ़ी में संस्कार, ज्ञान-विज्ञान, कर्तव्य बोध और विधान के गुणों को स्वदेश प्रेम की धारा के साथ प्रतिष्ठित करना है।

गीतकार महंत के गीतों में शिल्प की सादगी है। सीधी सरल भाषा में रचे गए गीतों में मिठास है। उनके गीतों में जनजागरण की अलख जगाने का संकल्प है। उनके गीतों में नूतन बिंबो, प्रतिकों, उपमानों का प्रयोग है। गीतों में भावपक्ष व कलापक्ष का समन्वय पाठकों को आकर्षित करेगा। उनके गीतों में गजब की सजावट व कसावट है। गीतों में सहज सरल हिंदी कहीं-कहीं संस्कृतनिष्ठ शब्दों के साथ साथ खड़ी बोली प्रयुक्त है। सभी गीत पारदर्शी और ज्ञानवर्धक है। उनकी भाषा शैली सरल-सहज एवं संप्रेषण कुशल है। गीतों में जीवन के उतार-चढ़ाव का धूप-छाँव की तरह संयोजन है।
गीतकार भाऊराव महंत में सामाजिक सरोकारों के प्रति तीव्र जागरूकता, वर्तमान समय की चुनौतियों को समझने की क्षमता के साथ-साथ एक अत्यंत कोमल मन अपनी संपूर्ण करुणा के साथ सक्रिय है। गीतों में कल्पना नहीं बल्कि यथार्थ चित्रण है। उनके गीतों में छायावाद, रहस्यवाद, प्रयोगवाद और प्रगतिवाद की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। उनकी भाव प्रवणता पाठकों को अत्यधिक प्रभावित करेगी और उन्हें यश दिलाएगी। गीतकार भाऊराव महंत के सुखद यशस्वी साहित्यिक जीवन के लिए मेरी मंगलकामनाएं सदैव उनके साथ है अंत में मैं उनके बारे में यही कहूँगा-

‘हर शब्द को सांचे में अपनी ढाल देते हैं।
निज भाव गीतों में प्रबलतम डाल देते हैं।
पाठक हृदय पढ़कर जिन्हें हो नित्य आंदोलित-
गीतों में भाऊराव वैसी ताल देते हैं।।’

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गीत-संग्रह – देवता पाषाण के

गीतकार – भाऊराव महंत
समीक्षक – डॉ. प्रेमप्रकाश त्रिपाठी

प्रेमनगर , बालाघाट
मध्यप्रदेश
मो. 8224050836

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