अभिषेक कुमार सिंह की पाँच ग़ज़लें
1.
माँ की जब भी शॉल डाली जाएगी
सर्दियों की चोट खाली जाएगी
हम मजूरों को ठिठुरना है सदा
हाँ ! कभी बीड़ी जला ली जाएगी
फेसबुक पे क्यूट फ़ोटो डालकर
क्या उदासी को छुपा ली जाएगी
दुख की भट्ठी में तपेगी ज़िंदगी
फिर नए साँचे में ढाली जाएगी
सच के सूरज का उदय होने तो दो
भीड़ ख़्वाबों की हटा ली जाएगी
जो अहिंसक थे सदा इस देश में
दुश्मनी उनसे निकाली जाएगी
तुम ही बांधो प्यार में घण्टी नयी
मुझसे यह बिल्ली न पाली जाएगी
लोग हैं पर साथ कोई है कहाँ
ज़िंदगी की ट्रेन खाली जाएगी
2
तैरने वालों के मन में डर रख दिया
आँधियों ने नदी में भँवर रख दिया
जीत की कोई संभावना ही नहीं
सबने तलवार के आगे सर रख दिया
अब जगह पर कोई चीज मिलती नहीं
वक़्त ने सब इधर का उधर रख दिया
मैं घटा देखकर ख़ुश बहुत था मगर
धूप ने भ्रम मेरा तोड़कर रख दिया
हम दिये कि तरह रोज़ जलते रहे
और सबने हमें ताख़ पर रख दिया
हर घड़ी घर की ख़ुशबू रही राह में
बैग में उसने सारा ही घर रख दिया
मैंने पढ़ ली निगाहों से उसकी थकन
उसने भी मेरे काँधे पे सर रख दिया
3.
बेख़ौफ़ जलने वाले चरागों के आस-पास
है आँधियों का झुंड उजालों के आस-पास
जलते हुये बसंत की यादों के आस-पास
हम सब खड़े हैं झुलसे, बहारों के आस-पास
सब चल रहे हैं पर किसी को कुछ पता नहीं
कब तक रहेगी रौशनी राहों के आस-पास
प्रश्नों की भीड़ में हैं यहाँ गुमशुदा सभी
सब कुछ ठहर गया है सवालों के आस-पास
समझो हमारी भूख के सौंदर्य बोध को
उगने दो सब्जियों को गुलाबों के आस-पास
लहरों के साथ चीख रहा कौन है यहाँ
पत्थर सिहर रहे हैं किनारों के आस-पास
बदहाल है तो क्या हुआ कुछ सब्र कीजिये
बदलेगा यह शहर भी चुनावों के आस-पास
आओ उतार लाएं ज़मीं पर वो रौशनी
जो झिलमिला रही है सितारों के आस-पास
4
रोये जो एकबार तो रोते चले गए
मन के अधीन जो हुए होते चले गए
निर्भर जो सिर्फ नाव पे होते चले गए
साहस के अपने द्वीप डुबोते चले गए
ख़्वाबों का बोझ सर से कभी कम नहीं हुआ
ताउम्र हम जिसे यहाँ ढोते चले गए
उनको पता चला ही नहीं रास्ते का सुख
पूरे सफ़र जो ऊंघते, सोते चले गए
शामिल हुए जो रेस में औरों को देखकर
दुनिया की भीड़ में कहीं खोते चले गए
हैरत है जिनके पास हँसाने का था हुनर
खंज़र की नोक दिल में चुभोते चले गए
उनको गुलाब की कभी मंज़िल न मिल सकी
काँटे जो सबकी राह में बोते चले गए
5
आप वाजिब सवाल करते हैं
कैसे इतनी मजाल करते हैं
आप धमकी से भी नही डरते
भाई साहब कमाल करते हैं
वैसे कुछ ख़ास वो नहीं करते
सिर्फ क़ायम मिसाल करते हैं
जिनका खंज़र लहू का प्यासा है
वो मेरी देखभाल करते हैं
हम हैं इस लोकतंत्र के बकरे
हमको सारे हलाल करते हैं
ज़िन्दगी रूठती ही रहती है
हम भी केवल मलाल करते हैं
कोई भी ख़्याल तब नहीं आता
जब भी तेरा ख़्याल करते हैं
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परिचय : अभिषेक कुमार सिंह
जन्मतिथि- 12/02/1988
पता – गया, बिहार
शिक्षा – बी टेक ( मेकैनिकल) , एम ए ( हिन्दी )
प्रकाशित कृतियाँ – वीथियों के बीच (गजल-संग्रह) , बाद- ए-सबा ( चार साझा ग़ज़ल संग्रह) , बेहतरीन गजलें (साझा संग्रह), संवदिया (ग़ज़ल विशेषांक) , ग़ज़ल त्रयोदश ( साझा संग्रह ) , ग़ज़ल परामर्श , सदीनामा , ककसाड़,वागर्थ, समकाल, नई धारा, समकालीन अभिव्यक्ति, सोच-विचार, प्रेरणा-अंशु, नवल,परिंदे,हस्ताक्षर इत्यादि पत्रिकाओं मे रचनाएँ प्रकाशित
मोबाइल 8903768162
E MAIL: 2008.abhishekkumar@gmail.com
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