ख़ास कलम :: दीप शिखा

 दीपशिखा की ग़ज़लें
1
कष्ट  ये  दाल  रोटी  का  जाता  नहीं ,
पेट खाली हो गर कुछ भी भाता नहीं।
मीर भी इस ज़माने में रहता अगर ,
उल्फतों  के  तराने  सुनाता  नहीं।
बिजली,पानी नहीं ना सड़क ही यहाँ ,
इसलिए इस गली कोई आता नहीं।
बेवजह  डरते हो इस ज़माने से तुम ,
आदमी  हैं  सभी  ये  विधाता  नहीं।
दुनिया  में  पैसे  वाले  मिलेंगे  बहुत ,
पर दुआ अब कोई भी कमाता नहीं।
रास्ता ख़ुद बनाना है सबको `शिखा´ ,
राह  मंज़िल  की कोई  बताता नहीं।
2
तेरी महफिल में क्या आने-जाने लगे,
तब से हम भी ग़ज़ल गुनगुनाने लगे।
कल तलक चोर थे आज देखो वही,
आईना इस जहां को दिखाने लगे।
 देखिए अब यहां क्या से क्या हो गया,
 की ख़ुदी को ख़ुदा सब बताने लगे।
लूट है, है वबा और मुश्किल घड़ी,
आदमी, आदमी को सताने लगे।
ऐ `शिखा´ तुम कहो अब कहां जाये हम?
आसमां ये ज़मीं सब डराने लगे
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परिचय : दीप शिखा लंबे समय से ग़ज़ल लिख रही हैं. इनकी ग़ज़लें कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं.

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