नज़्म
कान्हा। तुम्हारी याद में हूं बेकरार मैं,
करती हूं लम्हा लम्हा फकत इंतज़ार मै।
कहकर गए थे आओगे तुम जल्द लौटकर,
आकर करोगे ख़त्म ये तन्हाई का सफ़र।
क्या गोपियों के साथ में दिल को लगा लिया,
क्या रुक्मणि के साथ ने सब कुछ भुला दिया।
क्या तुमको मेरी याद भी आती नहीं कभी,
फुरकत ये मेरी तुमको रुलाती नहीं कभी।
इस दिल में चाहतों की तमन्ना लिए हुए,
फिरती हूं वो तुम्हारा दिलासा लिए हुए।
बेचैन किस क़दर हूं तुम्हारे फ़िराक में,
जलती हो शम्मा जैसे उम्मीदों के ताक़ में।।
उस अहद के ही बाद से आशा हो तुम मेरी,
जब से कहा था तुमने कि राधा हो तुम मेरी।
तुमको कसम है मेरी ना इतना रुलाओ तुम,
जितना भी जल्द हो सके बस लौट आओ तुम।
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परिचय : मीना खान की ग़ज़ल और नज़्म कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं.