खराबियां भी कविताओं में आ जातीं हैं
खराबियां भी कविताओं में आ जातीं हैं
ताकि सनद रहे
खराब लोगों की चालाकियां
इस तरह आतीं हैं
कविताओं में
जैसे कोई राक्षसी आती हो
सतर्क करती हो
एक बदसूरत से खूबसीरत लोगों को
ध्यान से सुनता हुआ
इन कविताओं को
एक शख्स
पहचाना नहीं जाता
एक वक्त ओह ऐसा
आता है
कि वह अपनी ख़राबी के साथ
प्रकट होता है दिलोदिमाग में
ओह उसे नहीं आना चाहिए था
एक इल्जाम के घेरे में
कविता में खलनायक होकर
उसे नहीं आना चाहिए था.
होली
इतने रंग इतने रंग
तुम्हारी दुनिया में
फिर भी चुनते हो
उनमें से एक
अपने लिये
वो भी किसी के कहने पर
और मुस्कराते नहीं हो
उसे अपने ऊपर रंग कर
गुस्से के रंग से भरे होते हो
बदले की भावना मन में लिये हुये
होली तुम्हारी स्थिति जानती है
इसलिये लेकर आई है रंगों का संसार
एक दो रंगों के लिये नहीं बने हो तुम
हर रंग में रंगो
रंगहीन हो जाने से पहले.
बसंत
पता नहीं
कैसा होता है
सुबह का आलम
नदी में सूरज की पहली किरण का
अक्स कैसा होता है पता ही नहीं
कैसे होते हैं चमकदार शहर
हंसते मुस्कराते हुए लोग कैसे होते हैं खुश
कुछ पता नहीं
प्रेम का कामयाब रस्ता
कोई बता दे
मुझे तो नहीं पता
कैसा होता है.
यहां तो बस
काम करने के लिए सुबह होती है
न थकने के लिए दोपहर और
बोझ लेकर घर लौटने के लिए
होती है शाम
रात केवल सोने के लिए ही कैसे होती है नहीं पता हमें
चटख रंग चिढ़ाते हुए मिलते हैं हमें
शीत ऋतु छोड़ कर जाती है हमारे घर
तब भी हम हिसाब से ठिठुरते रहते हैं
कर्ज की मार सहते हुए हम देख ही नहीं पाते खिले चेहरे के नूर
फूलों की खेती की झंझट बड़ी है हमारे गांव में
हमें नहीं है पता
बसंत किसे कहते हैं लोग.
कार्पोरेट के मुलाज़िम
वे दिन भर झुके रहते हैं एक बोझ से
सूर्योदय और गोधुलि देख ही नहीं पाते
बहुमंजिला में ख़रीदे लाखों के फ्लैट में
वे केवल सोने के लिये आते हैं
कभी-कभी बनावटी उमंग से
निहारते हैं ऊंचाई से नीचे के घर
और गौरव महसूस करते हैं
मसरूफ़ ही मसरूफ़ दिखाई देते हैं
अमेरिकन अँगेरेजी बोलते हैं आधे वाक्य में
पिताजी का भी फोन कट देते हैं
कि आ ना जाये इसी वक्त बॉस का कॉल
शिकारी की पोशाक में भेजे जाते हैं बाज़ार में
पर शिकार हो हैं सबसे पहले खुद
उनके पास सब कुछ है
एक अवकाश को छोड़कर
कि सोच भी सकें कभी
ऐसे धनवान होने की मुफलिसी
कि कभी समझ भी सकें
लाभ के धंधे की हानि.
और
कार्पोरेट के मुलाजिम होने के घाटे।
मत करो उसे फ़ोन
जब दिल हो किसी से बात करने का
तो मत करो उसे फ़ोन
एक कविता लिखो
लिखो कि याद आती है तो
क्या गुजरती है दिल पर लिखो कि इस वक़्त तुम्हें और कोई काम नहीं याद से ज्यादा जरूरी
लिखो कि उसके बात कर लेने भर से तुम कितने हो जाते हो हल्के
लिखो कि मसरूफ़ियत का कोई रिश्ता नहीं बातचीत करने से
और यह भी लिखो कि
बात करने की तीव्र इच्छा को तुमने कुचला
और लिखी एक कविता
………………………………………………………………………………………………
परिचय : ब्रज श्रीवास्तव जाने-माने कवि हैं. इनकी कविताएं निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं.
ब्रज श्रीवास्तव ,विदिशा,मध्य प्रदेश