पुस्तक समीक्षा

भावों के रंगों की भरमार- ‘नीले अक्स’
– समीक्षक – केदारनाथ ‘शब्द मसीहा’

कविता और वो भी जीवन से जो पैदा हो, पढ़ने पर पाठक के मन तक पहुँचती है। नीलू ‘नीलपरी’ एक ऐसी ही साहित्य साधिका है जो निरंतर अपने सृजन के पथ पर अग्रसर हैं।
कविता मानव मन के क्षणिक भावों का चित्रण भी है और दीर्घ मंथन का शाब्दिकरण भी है। जिस प्रकार जीवन का प्रवाह सुख–दुख के दो किनारों में रहता है, कविता भी आशा और निराशा में प्रवाहमान होती है। कहीं पर कविता हिम्मत बढ़ाती है तो कहीं टूटे हुए मन को सांतवाना भी देती है। कविताओं में काँटों की चुभन भी है और फूलों की कोमलता भी। यह तो शब्दों का सामर्थ्य ही है कि भावों को कवि या कवयित्री गुलदस्तों में गूँथकर सुग्राह्य बना देते हैं। बिना किसी मौसम के किताब हाथ में लिए शब्द-चित्रों के सहारे पाठक मन बहुत कुछ ऐसा महसूस कर लेता है जो उसने कभी देखा ही नहीं था। यही एहसास रचना की सार्थकता है जो ‘नीले अक्स’ में दिखती है।
ऐसी शख्सियत जो व्यख्याता, मनोवैज्ञानिक, और समाज सेविका भी हो, जब कलम उठाती है तो प्रकृति, प्रेम, पीड़ा, संबंध, जीवन का कोई भी क्षेत्र उसकी पहुँच से बाहर नहीं रहता। वह दूसरे के स्थान पर बैठ कर सोचने की क्षमता का सदुपयोन अपने सृजन के लिए करती हैं। विभिन्न क्षेत्रों में काम करने के कारण उनकी कविताओं में भावों का विस्तार भी अधिक हो जाता है। वर्तमान में कविता मूल रूप से छंदबद्ध नहीं है । शाब्दिक अलंकारों का इन कविताओं में कुछ अभाव हो सकता है किन्तु भावों के रंगों की भरमार है।
कविताओं का सम्बन्ध मानव संवेदनाओं से बहुत गहरा है। सच तो यह है कि संवेदनाओं से ही कविता का जन्म हुआ है। लेखिका के लिए लेखन ही जीवन का रस है, गंध है, स्वरूप है, अहसास है….!! ऐसा वे स्वयं भी मानती है और उनकी रचनाओं से और उनके जीवन से भी यह प्रदर्शित होता है । उनका अपना एक आदर्श वाक्य है अपने विषय में –
“परी जो केवल उड़ना चाहती है, पंख कतर दोगे तो भी उड़ान थमेगी नहीं। “
“नीले अक्स“ नीलू ‘नीलपरी’ जी की खूबसूरत कविताओं का संग्रह है, जिसमें उनकी सोच के अनेक रंग बिखर कर चिंतन के आकाश को रंगीन करते हैं। एक कविता में नारी मन और उसके समर्पण को कुछ यूं बयान करती हैं :-
उस अजनबी शख्स को
अनजान से अपना बन गया था
आगोश में पाती हूँ, अब भी उसको
दिसंबर की लंबी, सर्द रातों में
सुदूर पहाड़ी पर भी देखती हूँ
भोर के चमकते तारे के संग
दृष्टिगोचर हैं खुशियाँ समेटे
कुछ जाने-पहचाने से
नीले अक्स…
इनकी रचनाओं में नवयौवना की महक भी है। इसकी एक बानगी देखते ही बनती है :-
महकती, मचलती हवा सी वो लड़की
बादलों से मन ही मन बातें वो करती।
फूलों की बन कर वह रानी
तितलियों के पीछे है भागती
सपने सजाती, कुछ गुनगुनाती
वो मस्त बहार सी लड़की।
इनके सामाजिक सरोकार से जुड़े सवाल भी बहुत तीखे हैं। मानव मन को झकझोरते हैं :-
एक सवाल,
ज़िन्दगी का रक्षक..
क्यूँ आज आदमी
इतना लाचार
क्यूँ अपनी
नाकामी, हताशा, निराशा
छुपाता फिरता
अपनी जीवन-संगिनी के
बदन को दागदार कर
इतना निर्दयी
अपने मासूम बच्चों की
दूध की बोतल का सौदा
अपनी नशे की बोतल से कर
फूला न समाता ……………….
मर्म भेदी हैं ये सवाल। चुनौती हैं , संभावना कि तलाश हैं और साथ ही निराशा भी। आखिर जीवन ऐसा क्यों है ? इन प्रश्नों से तो व्यसन लिप्त एक परिवार जूझ रहा है। उनके उठाए सवाल बहुत सी मूक औरतों की जुबान हैं ।
दैहिक सौंदर्य उम्र की सिद्धियों का गुलाम है। किन्तु मानसिक सौंदर्य के साथ ऐसा नहीं है। एक अधेड़ स्त्री मन की पीड़ा को भी वे अपनी रचना में स्थान देती हैं। आकर्षण पर और उसको बरकरार रखने की जद्दोजहद पर उनकी कलम कुछ इस तरह चलती है :-
हम पैंतीस साला औरतें….
बच्चों की मॉम, पति की भोग्या, भूल गयी
है इक इंसान भी, हम पैंतीस साला औरतें
माँ, बहन ,बेटी, सखी और सहचरी, कितने रूप धरें
कभी थकती नहीं खुद में, हम पैंतीस साला औरतें …
एक रचना “बेज़ुबान ताली” में औरत कि प्रेम हताशा का वर्णन बहुत खूबी से वे करती हैं :-
हाँ थक ही तो गयी हूँ, अब
एक तरफा प्यार जो किया, तुमसे
हाँ थक ही तो गयी हूँ, अब
यूँ एक तरफ़ा संवाद करके
हाँ थक ही तो गयी हूँ, अब
एक हाथ से ताली बजाते-बजाते
ताली,
जो देखने वालों को तो
किसी को पास बुलाती सी लगती है
पर तोड़ नहीं पाती, तुम्हारी तन्मयता
आकृष्ट भी नहीं करती, तुम्हारा ध्यान
मैं, कोई मेनका नहीं
जीवन की कुंठा को जहां वे शब्द देती हैं , वहीं “बेशकीमती ख्वाब” भी देती हैं :
तुम्हारी नशीली आँखों को पढ़ा
उनमें तैरता अपना ही अक्स पाया
हौले से जो छू गया तुम्हारा हाथ
सिमट के रह गयी खुद में ही
हँसते हुए तुम्हारा ये कहना –
‘नीलपरी’ इतना क्यूं शरमा रही
न सिर्फ वे अपने आसपास को निहारती हैं बल्कि दूर गगन तक दृष्टिपात करती हैं । उनको चाँद से बतियाने का भी हुनर हासिल है :-
सुनो ! चाँद,
आज फिर वही तनहा
उदास कुंवारी सी है रात
काले आकाश के आगोश में
मीठी चांदनी बिखेरता
तुम्हारे और मेरे प्यार को
पूर्णता देता दृष्टिगोचर है
वही पूनम का नीला चाँद …..
प्रस्तुत काव्य-संग्रह अपने अंदर विभिन्न भावों को समाहित किए हुए जीवन के अनेक पक्षों पर मोहक चिंतन है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *