साहित्यिक सुरभि से भरी विद्यालयी आत्मकथाएं :: डॉ.शांति सुमन

साहित्यिक सुरभि से भरी विद्यालयी आत्मकथाएं

                                                -डाॅ. शांति सुमन

चितरंजन कुमार एक सुपढित, अनुभवी और विद्वान प्राध्यापक लेखक हैं। उनकी यह पुस्तक देखने में तो सामान्य लगती है पर यह  विशिष्ट तब लगने लगती है जब हम इसका उपक्रम और रचाव  देखते हैं। “आत्म- कथाओं में विद्यालय” इस पुस्तक को इन्होंने स्वत: नहीं लिखा है अपितु संपादित किया है। विद्यालय एक महत्वपूर्ण पड़ाव है- जीवन और उच्च शिक्षा का। हम उन बिंदुओं का साक्षात्कार करते हैं जो हमें आगामी जीवन की समस्त संभावनाओं के लिए तैयार करते हैं।

यह ऐसा संक्रमण काल है जहां हमारी मानसिकता विकसित होती है।यह सुनने में तो सरल लगता है पर इनको रूपायित करने में हमें इनकी गंभीरता से साक्षात्कार होता है यहां कुछ विचारणीय बातें हैं।

शिक्षा ही वह किरण दीप है जिसकी रोशनी में हम अपने भावी जीवन का चित्र गढ़ते हैं।यह सब बहुत आसान नहीं होता,हमारे प्रयासों को विपरीत स्थितियों का सामना करना पड़ता है। जाने कितने संघर्ष हमारे रास्ते में आते हैं एक मन की निश्चल सकती है जो हमें अपने रास्ते पर दृढ़ रखती है ।हमारे मन का प्रयास अटूट होता है,तो हमारा लक्ष्य अवश्य सफल होता है। हमारा आत्मविश्वास हमारे मन के प्रण को टूटने से बचाता है।इस पुस्तक में कई आत्मकथाएं हैं जिन से यह बात प्रमाणित होती है।

इस पुस्तक की भूमिका लिखते हुए चित्तरंजन कुमार ने लिखा है कि “वास्तव में,विद्यालय अपने समय का आईना है जिसमें हम अपने समय के बनते बिगड़ते सामाजिक-राजनीतिक स्वरूप को देख सकते हैं।”इन आत्मकथाओं से हम भिन्न भिन्न समय के विद्यालय एवं शैक्षिक स्वरूप को देखने में सक्षम होते हैं। चितरंजन कुमार ने स्वाध्याय एवं शैक्षिक चिंतन के स्वरूप को देखने में सक्षम होते है।चित्तरंजन कुमार के स्वाध्याय एवं चिंतन के फलस्वरूप इस पुस्तक में चार्ल्स डार्विन से लेकर चित्तरंजन कुमार के संस्मरणात्मक विद्यालयी स्मृत  जीवन तक की यात्रा कर सकते हैं।इसमें जितनी आत्मकथाओं में विद्यालय आए हैं सबको पढ़ा जाना चाहिए और उनसे अपने विद्यालय अनुभव से जोड़कर देखना चाहिए।

कुछ आत्मकथाओं में विद्यालय की दृष्टि से रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी,राजेंद्र प्रसाद,महादेवी वर्मा,रामवृक्ष बेनीपुरी, अब्दुल कलाम,रूपाली मजूमदार,अंजलि प्रसाद और चित्तरंजन कुमार के आलेख अवश्य पढ़े जाने चाहिए। चयन में अपने अभिभावकों और दूसरे बड़े लोगों के लिए टिप्पणीनुमा अभिलेखों का स्मरण जीवन भर रहता है।महात्मा गांधी ने अपने संस्मरण में लिखा है- ” यह तो भगवान ही बेहतर समझता होगा कि इस तरह बाल विवाह से कितने नौजवानों का भविष्य चौपट हो जाता होगा। पढ़ाई और विवाह जैसी दोनों बातें एक साथ हिंदू समाज में ही देखी जा सकती हैं।”

राजेंद्र प्रसाद की आत्मकथा में एक बहुत महत्वपूर्ण बात लिखी है कि ” एक तो कलकत्ता जाना और वहां का खर्च जुटाना ही मुश्किल। दूसरे वहां बिहारियों के लिए जगह मिलनी भी मुश्किल। जब उनके कलकाते जाने की बात तय हो गई तो सवाल हुआ कि मैं  कहां पढूंगा। मेरे लिए जाना उचित नहीं समझा गया।भाई कलकते गए ।मैं पटने से नाम कटा कर हथुआ स्कूल में नाम लिखाने के लिए भेजा गया।”

महादेवी वर्मा ने अपनी आत्मकथा “मेरे बचपन के दिन” में लिखा है ,” अपने परिवार में मैं कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्न हुई मेरे परिवार में प्राय:दो  वर्षों तक कोई लड़की नहीं थी सुना है इसके पहले लड़कियों को पैदा होते ही परलोक भेज देते थे फिर मेरे बाबा ने दुर्गा पूजा की। हमारी कुलदेवी दुर्गा थी।मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और वह सब कुछ नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ा था। ”

चित्तरंजन कुमार ने अपनी आत्मकथा-“बीते हुए दिन” में एक स्थान पर लिखा है-” प्राथमिक विद्यालय में ज्यादातर महिला शिक्षिकाओं से साक्षात्कार हुआ जो पढ़ाती कम और पीटती ज्यादा थी वर्षभर क्या पढ़ाती थी।यह आज तक समझ के बाहर ही रहा। समझ केवल इतनी बन गई थी कि परीक्षा के पहले कुछ प्रश्नों के उत्तर लिखवा दिए जाते थे और हम हर संभव उसे रट लेते थे किसी भी तरह से रटभी लेते परंतु परीक्षा में कब वर्तमान काल का वाक्य भूतकाल या भविष्य काल में बदल जाता,पता ही नहीं चलता था।”

इस तरह विद्यालय जीवन की आत्मकथा के परिदृश्य और विकास अत्यंत मनोरंजक एवं मोहक हैं क्योंकि वह सत्य कथाओं में हैं इसलिए इन पर विश्वास करना सहज है

चित्तरंजन कुमार के ” आत्मकथाओं में विद्यालय” पुस्तक में संकलित अभिलेखों का चयन और उपस्थान बहुत ही उपयोगी है। यह पुस्तक उपयोगी भी है ।यह पुस्तक रोचक और शिक्षा के विभिन्न संदर्भो को स्पष्ट करती है। यह चितरंजन जी का व्यक्तित्व ,स्वभाव और क्षमता ही है कि पुस्तक इतनी महत्वपूर्ण आकार ग्रहण कर पाई है।

……………………………………………………………….

परिचय : डाॅ शांति सुमन चर्चित कवयित्री व लेखिका हैं. इनकी कविता और गीत के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous post टूटे हुए कंधे :: अंजना वर्मा
Next post अभी ख़ून से शेर लिखने हैं हमको— डॉ. उर्मिलेश :: वशिष्ठ अनूप