लघुकथाओं को अलग ढंग से परिभाषित करते हैं रमेश बत्तरा
– ऋचा वर्मा
सवाल-दर-सवाल इसी शीर्षक से बीती सदी के सातवें एवं आठवें दशक के लघुकथा के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर और सारिका से लेकर तारिका तक की पत्रिका के संपादन कार्य से जुड़े रमेश बत्तरा , अपनी लघुकथाओं को संग्रहित कर प्रकाशित करवाना चाहते थे, पर कर नहीं पाए। उनके अधूरे स्वप्न को पूरा किया आज के जाने-माने लघुकथाकार अशोक भाटिया ने।
“सवाल -दर -सवाल… रमेश बत्तरा का लघुकथा -साहित्य” एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जिसमें उनके संपर्क में रहे लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकारों के संस्मरण ,उनकी 24 लघुकथाएं , पांच आलेख तथा उनसे लिया गया एक साक्षात्कार संग्रहित है।
संस्मरण वाला भाग जहां उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर भरपूर प्रकाश डालता है वही उन की लघुकथाएं अपने तेवर और प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण से किसी भी पाठक या साहित्यकार को आकर्षित करने में पूरी तरह सक्षम है।
साधारण से साधारण विषय वस्तु को विशेष बनाने की कला है उनमें ।
“सिर्फ एक?” लघुकथा में एक व्यक्ति की राहजनी के दौरान हुई हत्या और उसकी पत्नी का पालन पोषण के लिए अपने जिस्म को बेचने की मजबूरी की बात को उन्होंने एक सर्वथा अलग शैली में लिख कर इसे कालजयी रचना का रूप दे दिया है। इस लघुकथा के शीर्षक में प्रश्नवाचक चिन्ह का लग जाना ही पाठकों के दिल में कई सवाल खड़े करता है । इनकी लघुकथाओं का मुख्य स्वर बाजारवाद, भुखमरी, बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था, हिंदू-मुस्लिम कट्टरता चाटुकारिता ,यदा-कदा वंचित वर्ग की अनपेक्षित सी प्रतिक्रियाएं है।
कुछ लघुकथाएं पहेली जैसी हैं जो एक बार में समझ नहीं आती ,लेकिन जब समझ आ जाती हैं तो गहरे तक पैठ भी बना लेती हैं ,जैसे “खोया हुआ आदमी”।
लघुकथा की सबसे बड़ी खूबी है , न्यूनतम शब्दों का प्रयोग, इसका उदाहरण है ‘कहूं कहानी’ उसमें एक बच्ची के द्वारा कहलवाना ‘एक लाजा है,वो बोत गलीब है।” इंसानी जिंदगियों के अंतर्द्वंद को सही ढंग से उजागर करने में पूरी तरह सक्षम है ।
आजकल साहित्य के पाठकों से ज्यादा साहित्यकारों के बीच लघुकथा के विषय में चर्चा होती है , जबकि किसी भी साहित्य या कला का मुख्य उद्देश्य अपनी बात दर्शकों और पाठकों तक मनोरंजक तरीके से पहुंचाना होता है ।
लघुकथा के संबंध में प्रचलित अवधारणा का खंडन करते हुए एक जगह वह कहते हैं कि ,
“इनका पाठक ना तो इन्हें गाड़ी या बस में पढ़ने की चीज समझता है… न ही इसलिए पढ़ता है कि ये छोटी है जल्दी पढ़ी जायेंगी । इनका पाठक गंभीर, सुरुचिपूर्ण, सजग और सचेत नागरिक है । वह इन्हें समय निकालकर पढ़ता है और आशा करता है कि इनमें जीवन के जीवंत क्षणों की अभिव्यक्ति मिले ।”
लघुकथा को उसका अपेक्षित सम्मान दिलाने के लिए ऐसे वक्तव्यों को साहित्यप्रेमियों के समक्ष लाना नितांत आवश्यक है।
बहुत ही सटीक शीर्षकों के साथ लिखी गई छोटी-छोटी घटनाओं को लघुकथा का स्वरूप देता और हर वर्ग की कहानी को समेटे यह संकलन अपनी विविधता के कारण सचमुच पठनीय है।
अंत में इस पुस्तक के प्रस्तुतकर्ता अशोक भाटिया का नाम लिए बिना यह समीक्षा अधूरी है, जिन्होंने एक कुशल लघुकथाकार होने के साथ-साथ एक उत्कृष्ट समीक्षक तथा आलोचक के रूप में रमेश बत्तरा की दुर्लभ लघुकथाओं को संग्रहित कर पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करने का ऐतिहासिक काम किया है।
पुस्तक: सवाल – दर -सवाल
रमेश पुस्तक:सवाल – दर -सवाल
रमेश बत्तरा का लघुकथा – साहित्य
समीक्षक ऋचा वर्मा
लेखक : अशोक भाटिया
प्रकाशक : भावना प्रकाशन
प्रथम संस्करण : सन :2022
मुल्य : 175 : 00 रुपये