पवन कुमार की तीन कविताएं
मजदूरों की रामकहानी
मज़दूरो की रामकहानी
तुमसे नही सुनी जाएगी
तुम हो राजा राजमहल के
सुख ,वैभव में जीने वाले
प्यास भला क्या पहचानोगे
सोम सुधारस पीने वाले
प्यासे मर जाते बिन पानी
तुमसे नही सुनी जाएगी
जिनके दिन तपती दुपहर में
ईंटें, गारा ढोते बीते
जिनके बच्चो का मधु बचपन
केवल रोते-रोते बीते
राते बिस्तर से अनजानी
तुमसे नही सुनी जाएगी
रोज़गार छिन गये हैं जिनके
घर से दूर बहुत अपने हैं
भूखे,प्यासे पैदल चलते
बिखर गए जिनके सपने हैं
कबिरा की यह साँच बयानी
तुमसे नही सुनी जाएगी
कोयल जब तक मौन रहेगी
कोयल जब तक मौन रहेगी,
कौओं का स्वर गान चलेगा
गीत अटपटे से निकलेंगे,
लय के मुख पर ताला होगा
श्रवणद्वार अपशब्द सुनेंगे,
इन नयनों पर जाला होगा
यदि सुमनों को शह न मिलेगी,
काँँटो का उद्यान फलेगा
नेत्र-गगन के भीगे मोती,
अश्रु बनेंगे,बह जाएंगे
मन के जितने भी मृदु कोपल,
पतझर से मुरझा जाएंगे
जब तक दिनकर अस्त रहेगा,
अँँधियारा सिर तान चलेगा
विषम परिस्थितियों के क्षण हैं,
इनसे कैसे निपटा जाए?
हंसो के कुल से कोई जन,
आकर इतनी बात बताए
निष्कर्षों तक पहुँँचोगे या,
केवल अनुसंधान चलेगा?
हावी हुए घाव मरहम पर
ऐसी हवा चली नफरत की
हावी हुए घाव मरहम पर
घात लगाए हुए भेड़िये
मौका पाते निकले बाहर
उनको रक्तपान करना था
खुशी हुए वे खून बहाकर
लोगों में दंगा करवाया
नफ़रत का बाजार गरम कर
घायल बदन कराह रहे हैं
बहता लोहू का फव्वारा
नही सूझता आँखों से कुछ
किसको काटा किसने मारा
पड़ी लहाशे नोच रहे हैं
चीलें-कौए जात-धरम पर
जनता के जो बने रहनुमा
नेताओं के खेल निराले
गिद्धदृष्टि उनकी वोटों पर
जनता को दलदल में डालें
अपनी काली करतूतों पर
अरी सियासत जरा शरम कर
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परिचय : पवन कुमार, सीतापुर(उत्तर प्रदेश