ज़िन्दगी जितना सिखा नहीं पाती /हादसे उतना सिखा देते हैं :: डॉ.भावना

ज़िन्दगी जितना सिखा नहीं पाती /हादसे उतना सिखा देते हैं

  • डॉ.भावना

समझ में नहीं आ रहा कि कहाँ से शुरू करूँ?
मेरी एक ग़ज़ल का शेर है –

जिन्दगी जितना सिखा नहीं पाती
हादसे उतना सिखा देते हैं

सच ! हादसे मनुष्य के जीवन को कितना बदल देते हैं।वाकया 1 अक्तूबर का है। हम लोग यानी लेखक प्रजाति उम्र-भर संवेदनशीलता, सहिष्णुता,मानवता के स्लोगन को पढ़ते रहते हैं ।पर, जब इस्तेमाल की बारी आती है ,तो हमें सब विस्मरण हो जाता है। ये तमाम शब्द हमारे लेखन और वाचन में हैं, जीवन में नहीं। काश! यह शब्द लेखन और वाचन में भले ही कम होते ,मगर जीवन में होते तो जीवन कितना खूबसूरत होता! बातों को गोल-गोल घूमाने के बजाय सीधे-सीधे घटनाक्रम बताती हूँ ।मैं और मेरे पति ससुर जी के पुण्यतिथि पर पिंडदान हेतु’ गया’ गए थे, जिसे हम लोग श्रद्धापूर्वक ‘गया जी’ के नाम से जानते हैं । यह बिहार की राजधानी पटना से लगभग 102 किलोमीटर है और मेरे शहर मुजफ्फरपुर से पटना 80 किलोमीटर यानी मुजफ्फरपुर से गया की दूरी लगभग 182 किलोमीटर हुआ, जो आज के सुगम आवागमन के हिसाब से बहुत दूर बिल्कुल ही नहीं कहा जा सकता। हमने निर्णय लिया कि हम एक दिन में ही पिंडदान कर रात में वापस आ जाएंगे ।हमें दुर्गा पूजा में गुजरात जाना था ,इसकी फ्लाइट की टिकट पहले से बुक थी। हम लगभग दिन के 12:00 बजे ‘ गया’ पहुंच गए ।हमारा होटल वहाँ बुक था। नहा धोकर शीघ्र ही फल्गु नदी के तट पर पांडा के साथ हम पहुंच गए। सर्वप्रथम विधि विधान से फल्गु नदी में पिंडदान करने के उपरांत हम विष्णुपद मंदिर एवं अक्षय वट मंदिर में भी गए। सारे विधि विधान खत्म होते- होते शाम के 7:00 बज गए थे। पंडित जी के साथ-साथ हमने भी भोजन किया। पुनः होटल लौट आये। आधे घंटे विश्राम करने के बाद हम लगभग 8:45 बजे रात्रि में गया से मुजफ्फरपुर के लिए रवाना हुए। सब कुछ ठीक था । हम लोगों ने गलत रास्ता ले लिया। किसी तरह लोगों से पूछते हुए हम पटना पहुंचने ही वाले थे कि एक जोरदार आवाज के साथ गाड़ी धुएं धुएं में तब्दील हो गई। गाड़ी के दोनों एयरबैग खुल गए अगली सीट पर बैठे दोनों ड्राइवर सेफ थे। हम पति -पत्नी पीछे बैठे थे । इस जोरदार टक्कर की वज़ह से मेरा सिर किसी चीज से टकरा गया। मेरी आंख के आगे बिल्कुल अंधेरा छा गया।मेरे सिर फट चुके थे । अभी -अभी तो मैं मोबाइल की जीपीएस खोले रास्ता बता रही थी।पल में क्या से क्या हो गया। पटना बस 4 किलोमीटर ही तो दूर था। अचानक हुए इस हादसे से सभी स्तब्ध थे।
हमारा सर चकरा रहा था। मैं कुछ भी समझ नहीं पाई पूरी गाड़ी में धुआं भर चुका था। पति सबसे पहले गाड़ी का लॉक खोले और बाहर भागे। उन्होंने मुझे भी खींचकर बाहर निकाला। मैंने देखा मेरे सिर से खून टपक रहा था। दुपट्टा भी लाल हो रहा था ।डॉक्टर साहब (मेरे पति) ने झट से अपना रुमाल निकाल मेरे माथे पर जोर से दबा दिया। पुलिस वहाँ पहले से ही मौजूद थी या गाड़ी की जोरदार आवाज सुनकर आई, मुझे कुछ नहीं पता। पर, पुलिस मुझे बगल के पी एच सी (प्राइमरी हेल्थ सेंटर) में ले गई। मगर वहां कोई सुविधा न देखकर प्राइवेट क्लीनिक की तरफ हम भागे। मेरे पाँव लड़खड़ा रहे थे। मैंने पुलिस से कहा गाड़ी मंगवाइये , मुझसे नहीं चला जा रहा। शीघ्र ही पुलिस गाड़ी लेकर आ गई। मैं और मेरे पति उस पुलिस के साथ किसी प्राइवेट अस्पताल के लिए चले। पुलिस के बेतहाशा दरवाजा पीटने पर अस्पताल के किसी स्टाफ ने दरवाजा खोला। रात्रि के साढे ग्यारह बज रहे थे ।स्टाफ ने मेरे माथे पर खून टपकता देख अपना हाथ खड़ा कर लिया। मैं बुरी तरह से डर गई। मैंने अपनी लड़खड़ाती जुबान से बस इतना कहा कि आप पैसे की चिंता मत कीजिए। मेरे पति स्वयं डॉक्टर हैं। वे खुद उपचार कर लेंगे। बस आप सामान दे दीजिए। इतना सुनते ही वह मुझे सहारा देकर एक छोटे कमरे(ओटी) में लेकर गया। एक पीले बल्ब की रोशनी और ओटी टेबल। मैं फिर डर गई। पर ,उस वक्त दूसरा उपाय मुमकिन नहीं था ।डाक्टर साहब (मेरे पति)ने कहा कि खून का रिसाव बंद होना जरूरी है। डॉक्टर साहब ने मुझे ओटी टेबल पर सहारे से लिटा दिया। फिर ब्लेड से मेरे सिर के बाल को साफ किया।वे लगातार बोल रहे थे और मैं लगातार चेतना में रहने की कोशिश कर रही थी। उन्होंने मुझसे कहा कि बाल हटाना जरूरी है ताकि स्टीच ठीक से दे सकूं ।मैंने कहा- हाँ! ठीक है। फिर उन्होंने ग्लब्स मांगे। वहां का स्टाफ ग्लब्स को भी सही तरीके से खोलना नहीं जानता था। फिर उन्होंने स्प्रीट मांगा और हाथ को सेनीटाइज किया।ग्लब्स पहना फिर जाइलोकाॅन से मेरे माथे को सुन्न किया। वे स्टीच देते हुए लगातार परेशान हो रहे थे। कोई स्टाफ ट्रेंड न होने की वज़ह से उन्हें काम करने में काफी परेशानी हो रही थी। वे मुझसे बोले थोड़ा दुखेगा सह लेना। मैंने फिर हाँ कहा। मैं बोलते रहना चाहती थी। वह मेरे माथे पर इंजेक्शन दे रहे थे और मैं कराह रही थी ।मैं जानती हूँ कि उन्हें पेशेंट का कराहना बिल्कुल पसंद नहीं ।पर, मेरे मुंह से बरबस आवाज निकल रही थी ।मैं स्वयं बहुत बर्दाश्त करने की कोशिश कर रही थी ।उन्होंने किसी तरह उस पीली रोशनी में ही मेरे माथे के बहते हुए खून को रोका एवं स्टीच दे दिया और साथ में पट्टी बांध दी। मेरे गर्दन में बहुत तेज दर्द हो रहा था। मुझे लग रहा था कि जैसे मेरे गर्दन की हड्डी टूट गई हो ।डाॅक्टर साहब ने स्वयं लगातार कई इंजेक्शन दिए। शोर सुनकर हॉस्पिटल के मालिक भी पहुंच गए थे। उन्होंने डॉक्टर साहब को इतनी तल्लीनता से काम करते देखा तो समझ गये कि यह कोई छोटा-मोटा डॉक्टर नहीं बल्कि एक्सपीरियंस डॉक्टर है। वह हमें दूसरे कमरे में ले गए। डॉक्टर साहब से परिचय पूछा । आप कहां पोस्टेड हैं… इत्यादि…। डॉक्टर साहब का परिचय पाकर उन्होंने चाय बनवायी और हमसे पीने का आग्रह करने लगे।
उन्होंने आराम करने के लिए अपने पेशेंट देखने वाला बेड हमें दे दिया ।वह आदमी मुझे निहायत सज्जन लग रहे थे। इस बुरे वक्त में वह छोटा सा हॉस्पिटल अगर नहीं होता, तो हमारा क्या होता? मध्य रात्रि में यह हादसा और यह हॉस्पिटल! उस वक्त मुझे वह आदमी देवता और हॉस्पिटल पूजाघर -सा महसूस हुआ ।उस अस्पताल के मालिक किसी बड़े डॉक्टर के असिस्टेंट रह चुके थे। उन्होंने हमें इस वक्त कहीं भी जाने से मना किया। उन्होंने कहा कि आज की आपकी यात्रा ठीक नहीं है ।सुबह 4:00 बजे ही आप लोग यहां से निकल जाइयेगा ।
मेरा मोबाइल शायद बंद हो चुका था ।मैंने पर्स में उसे ढूंढने की कोशिश की। मोबाइल तो मेरे हाथ में ही था।
” हां, हां, मैं उस वक्त मोबाइल का जीपीएस खोल रास्ता ही तो बता रहे थी।”
मैं सिर में टांके लगने के बाद हाथ-पाँव हिला के देख रही हूँ ।गर्दन में अभी भी काफी दर्द हो रहा है। मैं लेटने में खुद को असमर्थ पा रही हूँ ।
रात के 1:00 बजने वाले हैं। हॉस्पिटल मालिक ने हमें टोका। चाय ठंडी हो रही है। डॉक्टर साहब ने कहा -‘चाय पी लो’। तुमने शाम की चाय नहीं पी है। तुम्हारा सिर दुखेगा। मैं याद करने की कोशिश कर रही हूँ। हाँ! मैंने शाम की चाय नहीं पी थी ।मगर मेरे सिर में चोट है। ऐसे में ,कोई तरल पदार्थ कैसे लूँ ? मुझे कुछ हो गया तो ? मुझे मोहन नाना की याद आने लगी। मोहन नाना परिहार थाना में वायरलेस ऑपरेटर थे ।एक दिन वे बस के इंतज़ार में एक पेड़ के किनारे खड़े थे। अचानक पेड़ का एक डाल उनके सिर पर आ गिरा। किसी तरह उन्हें सीतामढ़ी से मुजफ्फरपुर एंबुलेंस से लाया जा रहा था।मगर रास्ते में उन्हें प्यास महसूस हुई। उन्हें पानी दिया गया मगर पानी पीते ही उन्होंने दम तोड़ दिया। तब मैं बहुत छोटी थी। मां ने मुझे यह घटना विस्तार से बताया था। मैंने कहा- नहीं, मैं चाय नहीं पियूंगी। मुझे भी कुछ हो गया तो? पति ने कहा कुछ भी नहीं होगा, पी लो। मैंने उस अस्पताल संचालक की तरफ देखा। उन्होंने कहा पी लीजिए मैडम, आपको कुछ नहीं होगा। आप बहुत बड़े हादसे से से बच गई हैं। अगर गाड़ी ऑटोमेटिक लॉक हो जाता तो? सोचिए !क्या होता? मेरा बदन सिहर गया। हमने चाय पी ली। अस्पताल संचालक लाइट बंद कर हमें आराम करने के लिए कह चले गये। पर, मुझे नींद नहीं आ रही थी। मैंने चाय पी ली है। कुछ हो गया तो? मेरी बेटी, हां, वह तो घर पर ही है, उसे सूचना देना ठीक नहीं। वह काफी डर जाएगी।
क्रमशः

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