दिनकर की बाल कविताओं का माधुर्य :: जियाउर रहमान जाफरी

दिनकर की बाल कविताओं का माधुर्य

  • -डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफरी

हिंदी कविता में दिनकर का समय छायावाद के बाद है. दिनकर पुर हिंदी साहित्य में जयशंकर प्रसाद के बाद दूसरे साहित्यकार हैं,जिन्होंने गद्य और पद्य दोनों विधाओं में अपनी मजबूत दखल दी. दिनकर अपनी शैली और भाषाई प्रयोग के कारण भी जाने जाते हैं.उनका पूरा जीवन विरोध का है सिमरिया में 1907 में पैदा हुए दिनकर का जीवन अभाव और कठिनाइयों में बीता,बाद में उच्च सरकारी पद पर आसीन होते हुए भी वह गरीबी के दिन नहीं भूले,और जरूरत पड़ने पर पंडित जवाहरलाल नेहरू की भी आलोचना की. यह वही नेहरू थे जिन्होंने उन्हें राज्यसभा में पहुंचाया था. दिनकर ने नेहरू को संबोधित करते हुए लिखा-

देखने में देवता सदृश्य लगता है
बंद कमरे में गलत हुक्म लिखता है
भारतीय संस्कृति और परंपरा का उनके पास गहरा ज्ञान था दिनकर का कुरुक्षेत्र महाभारत के बाद सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली कृति है.उर्वशी उनका वह काव्य है जिसकी ख्याति आज भी उसी तरह मौजूद है. उनकी कविता को अगर गौर से देखें तो दो चीजें साफ दिखाई देंगी -एक राष्ट्रीयता का आवाहन और दूसरा परंपरा के साथ नवीनता की स्वीकारोक्ति. दिनकर अतीत और परंपरा को जानते हुए भी उसका फिर से मूल्यांकन करते हैं उन्होंने कहा भी है –

जब मैं अतीत में जाता हूं
मुर्दों को नहीं जिलाता हूं

परंपरा के बारे में दिनकर ने लिखा है –
परंपरा जब लुप्त होती है
सभ्यता अकेलेपन के दर्द से मरती है
दिनकर अपने लहजे से वीर रस के कवि कहलाते हैं.यही कारण है कि उनकी कविताओं की शैली में ओज,विद्रोह,आक्रोश और क्रांति का बिगुल है, पर यह देखकर आश्चर्य होता है कि दिनकर एक और जहां वीर रस की रचनाओं के कवि हैं,वहीं उन्होंने ऐसे बाल साहित्य की भी रचना की है जहां उनका लहजा ही नहीं बदला शैली भी बदल गई है. यहां तक कि उनके शब्द भी बदल गए हैं. उनकी ऐसी कविताओं में न दिल्ली कविता की हुंकार है,और न कुरुक्षेत्र और परशुराम की प्रतीक्षा का गहरापन. गरजने और बरसने वाली शैली के दिनकर यहां आकर बिल्कुल सरल और सहज हो जाते हैं.पचहत्तर से अधिक पुस्तकों के लेखक रामधारी सिंह दिनकर की बाल कविताएं भी हिंदी जगत में उतनी ही प्रसिद्ध है. यह अलग बात है कि दिनकर का अध्ययन करते हुए उनके बाल साहित्य पर हमारा ध्यान कम ही जाता है. असल में बाल साहित्य बच्चों की उम्र, समझ और कल्पनाशीलता के आधार पर लिखी जाती है. बाल सुलभ विशेषताएं बच्चों की अठखेलियां उसका भाव, विभाव नटखटपन, विभिन्न मुद्राएं, बोलियां,जिज्ञासा प्रश्न,प्रति प्रश्न आदि बाल साहित्य के उपजीव्य हैं. बच्चों की भावना,संवेदना मिजाज और मनोविज्ञान को समझने वाला ही अच्छा बाल साहित्यकार बन सकता है. दिनकर को इस चीज का भी पर्याप्त ज्ञान था. दिनकर की एक बाल कविता है- चांद का कुर्ता, जिसमें चांद एक दिन मां से जिद करता है कि वह उसका एक कुर्ता सिलवा दे.चांद का अपना तर्क है-

सनसन चलती हवा रात भर
जाड़े से मरता हूं
ठिठुर -ठिठुर कर किसी तरह
यात्रा पूरी करता हूं

पर मां चांद की फितरत से वाकिफ है.इसलिए वह कहती है- तुम्हारा कुर्ता तब बने जब तुम एक नाप में रहो –

कभी एक अंगुल भर चौड़ा
कभी एक फुट मोटा
बड़ा किसी दिन हो जाता है
और किसी दिन छोटा

मां तो मां है समस्या का फिर समाधान भी वही निकालती है-

अब तू ही बता नाप तेरा किस रोज लिवाएं
सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आएं

बाल काव्य विषयक दिनकर की दो पुस्तकें हैं – एक मिर्च का मजा और दूसरा सूरज का ब्याह. मिर्च का मजा में जहां उनकी सिर्फ सात बाल कविताएं हैं,वहीं सूरज का ब्याह में भी महज नौ बाल कविताएं मौजूद हैं. मिर्च का मजा की बाल कविताओं में थोड़ा हास्य और थोड़ा व्यंग है,और कहीं न कहीं किसी बेवकूफी का वर्णन भी है. उदाहरण के लिए मिर्च का मज़ा कविता में एक काबुली वाले का वर्णन है, जिसने मिर्च पहली बार देखा है उसे लगता है इतना सुंदर तो कोई फल ही होगा. एक चवन्नी देकर उसे वह खरीद लेता है,और खाने लगता है, फिर आगे क्या होता है दिनकर की इस कविता में ही देखें-

मगर मिर्च ने तुरंत जीभ पर अपना जोर दिखाया
मुंह सारा जल उठा और आंखों में पानी आया
आंख पोंछते दांत पीसते रोते और रिसियाते
वह खाता ही रहा मिर्च की छीमी को सिसियाते
इतने में आ गया उधर से कोई एक सिपाही
बोला बेवकूफ क्या खाकर यूं कर रहा तबाही
कहा काबुली ने मैं हूं आदमी ऐसा न वैसा
जा तू अपनी राह सिपाही मैं खाता हूं पैसा
कविता के अंत में काबुली वाले की मूर्खता का भी पता चलता है. उसके पचीस पैसे लग गए हैं,इसलिए पैसे वसूलने के क्रम में मुसीबत मोल ले रहा है. जाहिर है इस कविता में रोचकता तो है ही रहस्य और रोमांच भी है.
दिनकर की एक ऐसी ही रोचक बाल कविता है -चूहे की दिल्ली यात्रा जिसमें चूहा आजादी का जश्न मनाने सज -धज कर दिल्ली जाता है. वो जवाहरलाल से मिलने तक का सपना पाले हुए है.वह दिल्ली के लिए निकला है, लेकिन रास्ते में बिल्ली को देखते ही उसके दिल्ली के मंसूबे में पानी फिर जाता है. इस कविता के बहाने दिनकर द्वारा गांधीवाद और देश की आजादी के जश्न का भी जायजा लिया गया है. आप भी देखें कविता –

दिल्ली में देखूंगा आजादी का नया जमाना
लाल किले पर खूब तिरंगे झंडे का लहराना
अब ना रहे अंग्रेज देश पर अपना ही काबू है
पहले जहां लाट साहब थे वहां आज बाबू है
घूमूंगा दिन-रात करूंगा बातें नहीं किसी से
हां फुर्सत जो मिली मिलूंगा जरा जवाहर जी से
पर यह सारे ख्वाब बिल्ली के देखते ही टूट जाते हैं, और कविता का सुंदर समापन होता है-

इतने में लो परी दिखाई कहीं दूर पर बिल्ली
चूहे राम भागे पीछे को दूर रह गई दिल्ली
दिनकर की एक बाल कविता ‘किसको नमन करूं मैं’का भी काफी जिक्र होता है. दिनकर की एक ऐसी और कविता है ‘सूरज का ब्याह ‘दिनकर की बाल कविताओं की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें कथात्मकता होती है. सूरज का ब्याह कविता में सूरज की शादी की खबर से मोर,कोयल,लता,विटप,जलचर सभी खुश हैं,लेकिन एक वृद्घ मछली जलचरों को इस विवाह का भविष्य बताती है.वह कहती है -एक अकेला सूरज इतनी गर्मी भर देता है कि हम सभी जलचर झटपट करते हैं.सूरज का ब्याह होगा तो बच्चे भी होंगे,और यह बच्चे मिलकर हम सब का जीना हराम कर देंगे. इससे बेहतर है सूरज कुमारा ही रहे आप भी इस कविता की कुछ पंक्तियां का रसा स्वादन करें-

अगर सूरज ने ब्याह किया दस -पांच पुत्र जन्माएगा
सोचो तब उतने सुरजों का ताप कौन सह पाएगा
अच्छा है सूरज कुंवारा है वंश विहीन अकेला है
इस प्रचंड जगत की खातिर बड़ा झमेला है
दिनकर की एक और रोचक बाल कविता ‘पढ़क्कू की सूझ’ है. इसमें एक पढ़ा -लिखा आदमी तर्कशास्त्री से बहस करता है.प्रश्न यह है की बेल कोल्हू में कैसे घूमता है. मालिक कैसे जान जाता है कि कोल्हू में बैल घूम रहा है. पढ़ा लिखा आदमी बताता है कि उसने बेल के गली में एक घंटी बांध दी है. जिससे पता चल जाता है कि वह चल रहा है पर शास्त्री का तर्क है कि अगर बेल सिर्फ गर्दन हिलाता ही रह जाए तब भी घंटी बजती रहेगी. पढ़ा लिखा आदमी का जवाब दिनकर की अंतिम पंक्तियों में देखें-

यहां सभी कुछ ठीक-ठाक है यह केवल माया है
बैल हमारा नहीं अभी तक मंतिक पढ़ पाया है
दिनकर की बाल रचनाओं में प्रकृति का भी बड़ा मनोमुग्धकारी वर्णन है –

टेसू राजा अड़े खड़े
मांग रहे हैं दही बड़े
बड़े कहां से लाऊं मैं
पहले खेत खुदाऊँ मैं
उसमें उड़द लगाऊं मैं
फसल काट घर लाऊं मैं
उनकी प्रकृति परक बाल कविताओं में बादल भी है, पानी भी है,घटा,हवा,खेत,बाग और दरिया भी है. दिनकर की एक कविता है -वर्षा जिसे पढ़ते हुए सारी प्रकृति जीवंत हो जाती है आप भी स्वाद लें –

अम्मा जरा देखो तो ऊपर
चले आ रहे हैं बादल
गरज रहे हैं बरस रहे हैं
दीख रहा है जल ही जल
हवा चल रही क्या पुरवाई
झूम रही है डाली -डाली
ऊपर काली घटा घिरी है
नीचे फैली हरियाली
भीग रहे हैं खेत बाग बन
भीग रहे हैं घर आंगन
बाहर निकलूं मैं भी भीगूं

इन सब के अलावा भी जब दिनकर प्रगतिवादी चेतना की कविता रचते हैं तब भी उनका वात्सल्य रूप और लावन्य हमारे सामने आता है. उनकी कविता दूध -दूध में भूखे मां के स्तन से बच्चों को दूध न मिलाना उनकी नाराजगी की वजह बनती है,और वह इसके लिए भगवान तक को कटघरे में लाकर खड़े कर देते हैं. समर शेष है तथा शक्ति और क्षमा जैसी कविता आज भी बच्चों के पाठ्यक्रम का हिस्सा है.
कहना ना होगा कि अन्य साहित्य की तरह दिनकर बाल साहित्य भी प्रभावी ढंग से लिखते हैं. उनकी बाल कविताओं में बच्चों को सीख तो मिलती ही है, पर्याप्त मनोरंजन भी प्राप्त होता है. दिनकर की मेमना और भेड़िया कविता में सुरक्षित स्थान पर खड़े मेमने की चुहलबाज़ी बच्चों को भरपूर ज्ञान और मनोरंजन देता है. उनकी एक रोचक कविता ज्योतिषी में एक ऐसे व्यक्ति का वर्णन है जो आंख उठाकर तारा देखने के क्रम में नीचे गिर जाता है. इस कविता में दिनकर का संदेश है-

चलो मत आंखें मीचे ही
देख लो जब तब नीचे भी
उनकी चील का बच्चा कविता में चील का बच्चा बीमार है.दवाइयों से फायदा नहीं है, पर मैना किसी देवी -देवता के पास जाने को तैयार नहीं है,क्योंकि इस चील के बच्चे ने कोई ऐसी जगह नहीं है जहां चोंच न मारी हो –

मां बोली उधमी कहां पर जाऊं मैं
कौन देवता है जिसको गुहराऊँ मैं
तू ने किसके पिंडे का सम्मान रखा
किसकी थाली के प्रसाद का मान रखा
किसी देव के पास नहीं मैं जाऊंगी
जाऊं तो केवल उलाहना पाऊंगी
हम कह सकते हैं कि दिनकर की बाल कविताएं मात्रा में भले कम हों,रोचकता में कोई कमी नहीं है. अगर हम हिंदी साहित्य के इतिहास का अध्ययन करें तो पाएंगे कि तमाम बड़े हिंदी के कवियों ने बाल कविताएं भी लिखी हैं यही कारण है कि आज बाल साहित्य इतना समृद्ध रूप में हमारे सामने है.
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परिचय : जियाउर रहमान जाफरी हिंदी के प्राध्यापक हैं. ग़ज़ल और आलोचना में इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं

पता – ग्राम/ पोस्ट -माफी, वाया -अस्थावां, जिला्- नालंदा, बिहार- 803107
मो. 9934847941

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