विशिष्ट गीतकार :: पंकज वसंत
1 आओ हे! नव वर्ष, स्वागत !तेरा नव वर्ष, हर्ष-आनन्द चंद कम ले आना आओ प्रिय,लेकिन अधरों पर प्रतिबंध नहीं लेकर आना! मुस्काती प्रति प्रत्यूष...
विशिष्ट कहानीकार :: नीरज नीर
दर्द न जाने कोई नीरज नीर बरसात के बाद नदी जब अपना पानी समेटती है तो कुछ पानी किनारे के गड्ढों में छोड़ती चली जाती...
विशिष्ट ग़ज़लकार :: हस्तीमल हस्ती
1 रस्ता चाहे जैसा दे साथी लेकिन अच्छा दे प्यार पे हँसने वालों को प्यार में थोड़ा उलझा दे जिसमें सदियां जी लूं मैं इक...
विशिष्ट कवि :: अरुण शीतांश
खुर घर में धान आते ही बैलों के खुर याद आए हल चलाते समय गदबेर में कट चुका था गोहट मारना बाकी था खुर...
लघुकथा :: एस.मनोज
विरासत घनानंद बाबू जीवन की नैतिकता और मर्यादाओं का पालन करते हुए आदर्श जीवन जीते रहे और उन्होंने अपने दोनों बेटों रूपक और दीपक को...
मुखर संवादों की खुली किताब :: अनिरुद्ध सिन्हा
मुखर संवादों की खुली किताब ...
खास कलम : मधुकर वनमाली
"बीते साल के संदेश" था कठिन समय,वह बीत गया जो आई एक महामारी थी माना वह विपदा भारी थी कुछ रोग दिया, कुछ शोक दिया...
किसानों के लिए संघर्षरत रहे स्वतंत्रता सेनानी दामोदर प्रसाद सिंह :: डॉ.भावना
किसानों के लिए संघर्षरत रहे स्वतंत्रता सेनानी दामोदर प्रसाद सिंह - डॉ.भावना आज जबकि पूरे देश में जातिवाद, क्षेत्रवाद और अलगाववाद हावी है।हालात ये हो गये हैं कि सारे रिश्ते का जन्म स्वार्थ के ताने-बाने के रूप में होता है ।लोग सामाजिक प्राणी होते हुए भी अपने समाज से कटकर अलग समाज के निर्माण में संलग्न हैं ।मॉल कल्चर और अपार्टमेंट कल्चर के जमाने में गांव की मिट्टी पर जान छिड़कने वाले लोग किस्से कहानियों के पात्र प्रतीत होते हैं। इस मेल के जमाने में चिट्ठी अपनी प्रासंगिकता खो रही है वहीं बस, रेल और हवाई जहाज के जमाने में बैलगाड़ी की परिकल्पना आजकल के बच्चों के लिए कौतूहल का विषय है ।ऐसे खौफनाक समय में महान समाजसेवी एवं किसान नेता दामोदर प्रसाद जी का जीवन आज की पीढ़ी अनुकरणीय है।दामोदर प्रसाद जी का जन्म 15 फरवरी 1914 को मुजफ्फरपुर जिला के सरैया प्रखंड के मनिकपुर गांव में हुआ था। उनका ननिहाल भगवानपुर रत्ती है,जहाँ से उनका अत्यधिक लगाव था। इनके मन में बचपन से ही भारत मां के प्रति असीम स्नेह हिलोरे लेने लगा था।भारत मां को बेड़ियों जकड़ा देख इनका मन रो उठता था। उन्होंने सन 1942 ईस्वी में भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया तथा भूमिगत रहते हुए आजादी की जंग में तन- मन धन से डटे रहे। दामोदर बाबू गरीबों के मसीहा थे। इनकी नजर में ऊंच-नीच, जात पात का कोई महत्व नहीं था। किसी गरीब को रोते-बिलखते वे देख नहीं सकते थे।वे आम जनता की थोड़ी सी भी परेशानी पर अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए हमेशा ही तत्पर रहते थे ।इनके साथ साथ अन्य स्वतंत्रता सेनानीराम संजीवन ठाकुर, डॉक्टर शंभू नारायण शर्मा, मुनेश्वर चौधरी, गोपाल जी मिश्र, रामेश्वर प्रसाद शाही इत्यादि भी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे। पारु थाना कांग्रेस कमेटी के ये सभापति भी थे तथा इन्हें पंचायत के प्रथम मुखिया भी मनोनीत होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। ये अपने गांव में लगातार25 वर्षों तक मुखिया के पद पर आसीन रहे एवं इन्होंने बहुत ही ईमानदारी से गाँव व समाज का सेवा किया, जिसकी वजह से इनकी छवि किसान नेता एवं समाजसेवी के रूप में बनती चली गई । कहा गया है - बड़ा आदमी जो जिंदगी भर काम करता है बड़ी वो रूह जो रोए बिना तन से निकलती है स्वतंत्रा सेनानी दामोदर प्रसाद सिंह ऐसे ही एक शख्स थे जिनके रग-रग में देश प्रेम भरा हुआ था।...
विशिष्ट ग़ज़लकार :: ऋषिपाल धीमान ‘ऋषि’
ग़ज़ल 1 यों कभी लगता है जैसे मुश्किलों से दूर हूँ, और कभी लगता ख़ुशी की महफ़िलों से दूर हूँ। मान से होना वो...
विशिष्ट कवि :: शहंशाह आलम
दुःख दुःख पानी है जो आँखों से बहता है जिस तरह पानी के कई रास्ते होते हैं दुःख के भी होते हैं घरों की तरफ़...