स्त्री प्रेम की मार्मिक कथा कुलक्षिणी :: डॉ.भावना

स्त्री प्रेम की मार्मिक कथा कुलक्षिणी

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कुलक्षिणी उपन्यास हरिश्चंद्र दास का महत्वपूर्ण उपन्यास है, जो आर पब्लिकेशन मुंबई से छप कर आया है। इस पुस्तक को महाराष्ट्र साहित्य अकादमी से पुरस्कार भी मिला है। हरिश्चंद्र दास लोकप्रिय गीतकार तो हैं ही उतने ही लोकप्रिय उपन्यासकार भी हैं ।उन्होंने अपने आत्मकथा में स्वयं कहा है कि’ स्त्रियाँ हमारे समाज की आधारशिला है। उन्हीं पर तो हमारे समाज का सारा भार टिका हुआ है। स्त्रियों से ही तो हमारा घर बनता है। उनसे ही हमारे घर और परिवार का स्वरूप ढलता है। हमारा घर- परिवार जन्म लेता है। पलता- बढ़ता है। सर्व विदित है कि माँ ही हमारे समाज की जननी है। संसार का हर पुरुष माँ से पैदा होता है। हमारा संपूर्ण जीवन माँ पर आश्रित होता है। माँ  की दुर्दशा हमारे संपूर्ण समाज की दुर्दशा है। मेरा विश्वास है, देश चाहे कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले, हमारा अर्थ तंत्र कितना भी मजबूत क्यों न हो जाए, भौतिक साधनों की भरमार ही क्यों न हो जाए, वैज्ञानिक चमत्कारों से हम संसार का सिरमौर ही क्यों न हो जाएं , जब तक हमारी स्त्रियां सुरक्षित नहीं होगीं हम सुख- समृद्धि से कोसों दूर ही रहेंगे।… पुरुष की संपूर्ण मानसिकता में एक सुंदर स्त्री होती है, जो पुरुष के संपूर्ण जीवन को स्पंदित करती रहती है। अर्थात ऐसा कहा जा सकता है कि पुरुष की संपूर्ण अंतर्चेतना पर स्त्री का आधिपत्य होता है। वह शक्ति स्वरूपा तो जैसे प्रेम पुरुष के रोम-रोम में व्याप्त है ।उसके बिना तो पुरुष अपने जीवन यात्रा के दो कदम भी तय नहीं कर सकता। अकेला पुरुष है ही क्या? कुछ नहीं एक पहिए की भला कौन सी गाड़ी होती है? गाड़ी तो भला दो पहिये से ही चल सकती है ।’

आगे वे कहते हैं कि ‘हमारा घर और परिवार आज भी पुरुष प्रधान है। अगर पुरुष वर्ग सच्चे हृदय से ठान ले तो हमारी स्त्रियों को माता का दर्जा देकर उनके गिरते सम्मान को पुनर्स्थापित किया जा सकता है। जिस  घर समाज में स्त्रियां समादृत होगीं, निश्चित ही वह समाज अपनी खोई गरिमा को पुनः प्राप्त कर एक उच्च सांस्कृतिक उपलब्धि से सराबोर होगा ।इसके विपरीत जिस समाज में उन्हें प्रताड़ित किया जाएगा। जहाँ वह उपेक्षित रहेंगी, हमारे विकास और वंश वृद्धि पर बड़ा ही विकृत प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में, हमारे समाज को रसातल जाते देर न लगेगी। प्रस्तुत उपन्यास में रागिनी एक उज्जवल चरित्रवान और निश्छल नारी है। दुर्भाग्य वश वह कुछ दकियानूसी विचारों का शिकार हो जाती है। परंतु ,परमात्मा की कृपा उसे बचा लेती है। उसका खोया हुआ स्वर्ग उसे फिर से प्राप्त हो जाता है ।

रागिनी आज के जमाने की लड़की है। शादी की रात जब उसके भावी पति का एक्सीडेंट हो जाता है, तो वह सारे लोक लाज और मर्यादा को त्याग कर उसे  हॉस्पिटल देखने जाती है। अस्पताल में उसके साथ रहकर उसकी पूरी सेवा करती है। अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद जब उसके भावी पति घर जाना चाहता है, तो वह किसी की न सुनते हुए उसके साथ उसके घर चली जाती है। हमारे समाज में एक बिन ब्याही लड़की का अपने होने वाले पति के साथ रहना, किसी को भी बर्दाश्त नहीं होता ।लेकिन रागिनी बिना किसी की परवाह किए अपने फर्ज को सर्वोपरि समझती है। उसकी नजर में भावी पति की सेवा करना ही उसका सबसे बड़ा धर्म है और इस धर्म के आगे वह दुनिया की परवाह नहीं करती। यहाँ तक की उसके माता-पिता भी उसे समझाते हैं। पर, वह किसी की नहीं सुनती और दिन रात अपने भावी पति की सेवा में खुद को झोंक देती है ।लेकिन परिस्थिति वस उसे भी बहुत कुछ सुनना पड़ता है और उसके जीवन में भी तूफान आते हैं।  अंतत:  सब कुछ ठीक हो जाता है । एक स्त्री जो सुलक्षिणी है वह परिस्थिति वस कुलक्षिणी बनती है। पर, अपने धर्म के पद पर चलते हुए पुनः सुलक्षिणी  बन जाती है। यह उपन्यास भावनात्मक रूप से एक सफल उपन्यास है, जिसे एक बैठक में आप बिना पढ़े नहीं रह सकते।

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पुस्तक- कुलक्षिणी

लेखक – हरिश्चंद्र दास

समीक्षक- डॉ .भावना

पब्लिकेशन – आर .के पब्लिकेशन

मूल्य – 295

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