अपने समय को समझने का महत्वपूर्ण दस्तावेज है जब थम गई दुनिया :: डॉ.भावना

अपने समय को समझने का महत्वपूर्ण दस्तावेज है जब थम गई दुनिया

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‘जब थम गई दुनिया’ सुजीत वर्मा का सद्य: प्रकाशित उपन्यास है, जो सर्व भाषा प्रकाशन, नई दिल्ली से छप कर आया है। यह उपन्यास प्रकृति एवं आधुनिक जीवन की मूल्य हीनता के दंड से उपजी महामारी कोरोना पर केंद्रित एक वैचारिक उपन्यास है। यह उपन्यास यह बताता है कि जब हम प्रकृति का दोहन करते हैं, तो कहीं- न -कहीं इसका खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ता है ।कोरोना महामारी की विभीषिका ने जितने सितम ढाए हैं ,वह न जाने कितनी पीढ़ियों को सबक सिखाने के लिए पर्याप्त है। अगर हम इस महामारी को अपनी आँखों से देखने के बावजूद भी नहीं संभले तो फिर कभी भी नहीं संभल पाएंगे !

सुजीत वर्मा एक बहुत ही संवेदनशील लेखक हैं और उतने ही संवेदनशील कवि भी। उन्होंने उपन्यास के आत्मकथ्य में स्वीकार किया है कि ‘मई का दूसरा पखवाड़ा था। महामारी अपने चरम पर थी। मेरे पास लिखने के लिए कलम और पेंसिल सभी खत्म हो चुके थे। स्टेशनरी की दुकान बंद थी ।एक दिन स्कूल का सफाई कर्मी दिनेश मेरी सोसाइटी में आया। अपने हाथ में प्लास्टिक का थैला लिए दूर खड़ा था ।सर ,इसमें पेंसिल है ले लीजिए । कहकर जमीन पर थैला रख कर दूर रख दिया और जाते-जाते कहा सर आपकी किताब मैं भी पढ़ूंगा। थैली में पेंसिल के छोटे-छोटे ढेर सारे टुकड़े थे सभी टुकड़े एक से डेढ़ इंच के थे ।मैंने शाम में उसे फोन किया तो उसने बताया कि वह विभिन्न कक्षाओं में रखें डस्टबिन और स्कूल के पीछे कूड़े के ढ़ेर से पेंसिल के टुकड़े बटोर कर मुझे दिया है। मेरा मन कृतज्ञता से भर गया। किंतु महामारी की दूसरी लहर डेल्टा के बाद वह कहाँ चला गया पता नहीं चला ।’ इस तरह के कई ऐसे लोग जो दूसरे की सेवा लगातार कर रहे थे , महामारी की चपेट में आए और इस दुनिया को अलविदा  कह दिया। इस कोरोना महामारी ने हमसे न जाने कितने लेखक ,वैज्ञानिक, शिक्षक  बैंक कर्मी और स्वास्थ्य कर्मी इत्यादि को छीन लिया। स्टीफेन हॉकिंग कहते हैं ‘हम वर्तमान को याद रखते हैं ,लेकिन हम भविष्य के बारे में क्यों नहीं सोचते हैं? ‘ तो कहीं न कहीं हम सभी कटघरे में खड़े प्रतीत होते हैं। हम सभी आज के लिए सोचते हैं कि कैसे हमारा आज बेहतर हो ,सुरक्षित हो। लेकिन हम यह नहीं समझ पाते कि कल हमारी धरती हमारे किस कृत्य की वज़ह से महफूज रहेगी!  अगली पीढ़ी हमें एक शोषक पीढ़ी के रूप में याद करेगी या फिर एक संवेदनशील पीढ़ी के रूप में ?सवाल बहुत गंभीर है ! जवाब हमें ही तलाशने हैं ।सुजीत वर्मा  ने इस उपन्यास के बहाने एक बड़ा सवाल हम सभी के बीच रखा है।  कोरोना महामारी जिस तरह से हमारे जीवन में उथल-पुथल मचाते हुए हमें स्तब्ध करके गया है ,उसे भूल पाना कभी संभव नहीं। सुजीत वर्मा ने अपने उपन्यास को समय के साथ वार्तालाप करने के लिए अखबारों के कतरनों का भी उदाहरण दिया है। उनके अनुसार उस दिन के अखबार के संपादकीय में पर्यावरण पर गंभीर लेख छपा था। जंगल कट रहे हैं। हानिकारक गैसों की मात्रा बढ़ रही है ।तापमान बढ़ रहा है। जलस्तर गिर रहा है ।क्या ऐसी स्थिति के लिए सिर्फ निरक्षर लोग जिम्मेदार हैं ।बिल्कुल नहीं अनपढ़ और गवार से इस धरती को उतना खतरा नहीं जितना धूर्त, चालक और तथा कथित शिक्षित मनुष्य से है ।एक तरफ वित्तीय औद्योगीकरण के पक्ष में खड़े होकर प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं, दूसरी तरफ पर्यावरण के प्रति गंभीर चिंता भी जता रहे हैं। कितनी बड़ी बिडंबना है कि जितने भी औद्योगिक क्षेत्र हैं सभी विकसित हैं। विकास के सारे चिंतन ,सारे विचार ,सारे शोध आधुनिकीकरण पर ही केंद्रित है ।भोला सस्टेनेबल डेवलपमेंट की ही तो बात कर रहा है। छुट्टी की घंटी बज गई। बच्चे घर जाने के लिए कतार में खड़े होने लगे ।प्रशांत मुख्य द्वार पर खड़े होकर एक-एक करके बच्चों को बाहर निकलने में सहयोग कर रहा था। कतार के अंत में भोला था। वह मुख्य द्वार पर आकर रुक गया और बड़ी विनम्रता से बोला –  सर उस समय मैने सही बोला था न! प्रशांत ने मुस्कुराते हुए उसकी पीठ थपथपाई और कहा आज के अखबार में भी यही बात छपी है ।

सुजीत कुमार वर्मा का यह उपन्यास न केवल रोचक है बल्कि अपने समय को समझने का महत्वपूर्ण दस्तावेज भी है, जिसे अवश्य ही पढ़ा जाना चाहिए।

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पुस्तक -जब थम गई दुनिया (उपन्यास)

लेखक – सुजीत वर्मा

प्रकाशक-  सर्व भाषा प्रकाशन ,नई दिल्ली

समीक्षक – डॉ. भावना

मूल्य – 250

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