ख़ास कलम :: शुभा मिश्रा
शुभा मिश्रा की दो कविताएं निर्वासन कवियों लेखकों के साये में पली- बढ़ी मैं कल इनसे अलग होकर जीऊँ सोचकर ही कॉंप जाती हूँ मैं अज्ञेय और राकेश को…
शुभा मिश्रा की दो कविताएं निर्वासन कवियों लेखकों के साये में पली- बढ़ी मैं कल इनसे अलग होकर जीऊँ सोचकर ही कॉंप जाती हूँ मैं अज्ञेय और राकेश को…
दरिद्र भोज – अंजना वर्मा सीमा सवेरे से रसोई में व्यस्त थी। आज उसके पिता की पुण्यतिथि थी । साल में एक बार आने वाली इस…
ग़ज़ल चंद टूटे हुए बिखरे हुए ख़्वाबों के सिवा कुछ नहीं अब मेरे दामन में शरारों के सिवा दिल सुलगता है मेरा, शोला बयानी से तेरी बोल कुछ और मेरी…
सुरेखा कादियान ‘सृजना’ की दो लघुकथाएं सृजना “राज आँटी एक चाय ले के आना” वैष्णवी ने स्टाफ रूम में आते ही चाय के लिए बोला और थकी सी सर पकड़कर…
आशा पाण्डेय जी की नज़र से समसामयिक जीवन का कोई भी सिरा छूट नहीं पाता – डाॅ भावना ग़ज़ल हिन्दी साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है। कोई विधा के…
समकालीन हिन्दी ग़ज़ल में गांव की उपस्थिति -डा जियाउर रहमान जाफरी गजल उर्दू काव्य…
गरिमा सक्सेना के नारी विमर्श के पांच गीत 1 रिश्ता जीवन का पुनीत आधी आबादी ममता, त्याग, दुलार, मीत आधी आबादी तुलसी, आँगन, घर की शोभा, बरतन-बासन पहली शिक्षा…
1 हो न जाएं ख़ाक ये सद्भावना की बस्तियांँ मज़हबों की माचिसों में नफरतों की तीलिया कुछ हवा कुछ रोशनी कुछ खुशबुएं मिलती रहें, बस खुली रखनाहमेशा सोचकी सब…
धान रोपती औरतें धान रोपती औरतें आँचलिक भाषा में गाती हैं जीवन के गीत अवोध शिशु की तरह पुलक उठता है खेत का मन उनके हाथों के स्पर्श से …