‘तस्वीर कहीं तो है’ में रिश्तों का आपसी सामंजस्य :: डॉ भावना

‘तस्वीर कहीं तो है’ में रिश्तों का आपसी सामंजस्य               

  • डॉ भावना

समकालीन हिंदी ग़ज़ल दुष्यंत के बाद आज जिस मुकाम पर है ,वहां तक की यात्रा का एक अनिवार्य और महत्वपूर्ण नाम अनिरुद्ध सिन्हा का है ।’तस्वीर कहीं तो है’ इनका नौवां ग़ज़ल- संग्रह है, जो श्वेतवर्णा प्रकाशन ,नई दिल्ली से छप कर आया है ।इस संग्रह में कुल 114 ग़ज़लें हैं। गौर करने वाली बात यह है कि अनिरुद्ध सिन्हा जी के सभी संग्रह का नाम ‘ त’ अक्षर से शुरू होते हैं यथा- तिनके भी डराते हैं, तपिश ,तमाशा, तड़प ,तो गलत क्या है ,ताकि हम बचे रहें, तो मैं ग़ज़ल कहूं, तुम भी नहीं और तस्वीर कहीं तो है। संग्रह के इन सभी शीर्षकों पर गौर करें तो हमें महसूस होगा कि ये शीर्षक कहीं न कहीं समाज के प्रति उनके सकारात्मक दृष्टिकोण का आईना है ।
कुछ लोग सारे रिश्ते को एक ही तराजू पर तौल देते हैं। यह तौलना विपरीत स्वभाव वालों को एक दूसरे का ग्रास बना देता है। जिस तरह सूरज और शबनम के मेल में शबनम कितना और कहां तक बच पाएगा, इसे समझा जा सकता है। शेर देखें –

रिश्तों में शामिल कैसे हो सकते हैं
सूरज तो सूरज है शबनम शबनम है
पृष्ठ 29

मानव के जीवन में सबसे खूबसूरत और अहम रोल रिश्तों का होता है ।बिना रिश्तों के हमारा जीवन दूभर हो जाता है।हमें रिश्ता निभाना आना चाहिए। यह दुनिया का सबसे कोमल एहसास है,जिसको निभाना और कद्र करना हमारे हाथ में है। हम अपने घर के रिश्तों को दरकिनार कर बाहर के लोगों में अपनी खुशियां तलाश करते हैं। यह तलाश महज मृगतृष्णा के सिवा कुछ भी नहीं होता। रिश्ते बिल्कुल फसल की तरह होते हैं, जिन्हें जिस तरह सींचा जाता है उसी के अनुसार फसल भी तैयार होती है। शेर देखें –

तोड़कर अपने बुजुर्गों का वो दिल
ढूंढने निकला है फिर रिश्ते नये
पृष्ठ 30

या
लगेगी फसल ज़िंदगी की कभी तो
कड़ी धूप में वक्त के बीज बोएँ
पृष्ठ 35

समकालीन हिंदी ग़ज़ल अपने कथ्य, बिंब और मुहावरे के अनूठेपन की वज़ह से पाठकों की पहली पसंद बन चुकी है। भारतीय परिधान में भारतीय स्त्रियों का व्यक्तित्व बहुत ही गरिमामयी प्रतीत होता है, परंतु न जाने क्यों पश्चिम की नकल करने की होड़ ने भारतीय स्त्रियों को अंग प्रदर्शन की दुनिया में शामिल कर दिया है। शेर देखें-

शर्म के वृत्त सिमटने लगे
देह जब अधखुली हो गई
पृष्ठ 37

भूमंडलीकरण और उत्तर आधुनिकतावाद ने हमारे देश की अर्थव्यवस्था को जरूर नई उँचाई दी है ,पर हमसे बहुत कुछ छीन भी लिया है ।पश्चिम की अंधाधुंध नकल ने हमारे नैतिक मूल्यों को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया है ।फेसबुक , टि्वटर ,इंस्टाग्राम की चकाचौंध ने घर की बुनियाद को कमजोर कर दी है।लोग घर में होते हुए ज्यादा वक्त सोशल साइट्स पर बिताना पसंद करते हैं।शेर देखें-

न जाने कौन सी मंजिल पर आकर रुक गया हूं मैं
कि मेरे हाथ से मेरा ही घर अब दूर लगता है
पृष्ठ 72

मानवीय मूल्यों के क्षरण के इस दौर में मोहब्बत का सौदा आम बात हो चली है। अनिरुद्ध सिन्हा ऐसे बेवफा लोगों को रिश्तों की अदालत में पेश करने की वकालत करते हैं ताकि उनमें प्रेम के प्रति सम्मान पैदा हो।शेर देखें –

जिसने हर बार मोहब्बत का किया है सौदा
उसको रिश्तों की अदालत में बुलाया जाए
पृष्ठ 84

या
हटा देते हैं पल भर में नज़र से शर्म के परदे
मुहब्बत करने वालों ने शराफत बेच डाली है
पृष्ठ 93

आज सियासत का जो चेहरा है वह बहुत ही विद्रूप हो चला है। कुर्सी हासिल करने के लिए नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं। यहां तक की जनता को आपस में लड़ाने का काम कौन करता है, यह बात आज किसी से भी छिपी नहीं है ।जब दो कौम आपस में लड़ती है तब कोई दूर से इस लड़ाई को अपने फायदे के लिए किस तरह इस्तेमाल किया जाए, इसकी योजना बनाते हैं।इसी बात को बहुत ही मजबूती के साथ सिन्हा जी कहते हैं ।शेर देखें –

हद से ज्यादा बढ़ीं नफरतें
जब सियासत उछाली गई
पृष्ठ 86

प्रतीक और बिंब के अलहदा प्रयोगों से भरपूर ग़ज़लों का आस्वाद लेना हो तो आपको अनिरुद्ध सिन्हा की ग़ज़लों से अवश्य ही गुजरना चाहिए। कभी-कभी उनकी ग़ज़लों को पढ़ते हुए यह अहसास होता है कि वे इतना अछूता ,टोटका और अलहदा प्रतीक और बिंब न जाने कहां से उठा कर ले आते हैं। जरा उनका यह शेर देखें-

प्यासों की इस जमात में बादल के नाम पर
होठों पर आंसुओं का समुंदर ही ढाल दे
पृष्ठ 91

तस्वीर कहीं तो है संग्रह में जीवन जगत की तमाम विसंगतियों एवं विद्रूपताओं को स्वर दिया गया है ।अनिरुद्ध सिन्हा की ग़ज़लों की जमीन जितनी कोमल है ,प्रभाव उतना ही मारक भी। वर्तमान समय के आर्थिक, सामाजिक, संस्कृति एवं वैचारिक मुद्दों को पूरी मजबूती के साथ अपनी अलग दृष्टि से अभिव्यक्त करना इनकी ग़ज़लों की खासियत है ।शायद यही वजह है कि यह संग्रह ग़ज़ल प्रेमियों की पहली पसंद बन रही है।

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पुस्तक- तस्वीर कहीं तो है
ग़ज़लकार- अनिरुद्ध सिन्हा
समीक्षक-डाॅ भावना
प्रकाशन- श्वेतवर्णा प्रकाशन
मूल्य- 199

समीक्षक – डॉ भावना

कवियित्री और समीक्षक

संपादक

आंच हिंदी साहित्य की वेब पत्रिका

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