छंदबद्ध रचनाओं का दस्तावेज आये हैं तो काटेंगे :: डॉ.भावना

छंदबद्ध रचनाओं का दस्तावेज आये हैं तो काटेंगे

                                                      – डॉ.भावना

आये हैं तो काटेंगे मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कृति है, जो संदर्भ प्रकाशन, भोपाल से छपकर आयी है। कुल 118 पृष्ठों की यह किताब कई मायने में बिल्कुल अलग है।यह मेरे हिसाब से पहली ऐसी किताब है ,जिसमें रचना के साथ रचना प्रक्रिया भी उद्धृत है। कोई भी रचना सृजित होने से पहले गर्भ में किन – किन परिस्थियों से जूझकर आकार ग्रहण करती है ,यह पुस्तक वैसे जिज्ञासुओं के लिए बहुमूल्य है।
भारत की आत्मा छंद में बसती है। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में यह लगने लगा था कि छंद कविता जैसे हाशिए पर आ गई हो। पर, तब भी कुछेक रचनाकार ऐसे थे, जिन्होंने अपने हठ से छंद को साधे रखा। उन्हीं की वजह से आज बाजी पलट गई है और छंद कविता अपने पूरे दमखम से साहित्य में सिर चढ़कर बोल रही है।

दिनेश प्रभात एक ऐसे ही विरले रचनाकार हैं, जिन्होंने छंद को अपना जीवन माना है। यह कहना कठिन है कि वे गीत, ग़ज़ल और मुक्तक में बेहतर क्या लिखते हैं? वे छंद की जिस विधा में लिखते हैं, उसमें वे इस तरह डूब के लिखते हैं कि जैसे वह उनकी आत्मा की आवाज हो। यही वजह है कि पाठक इन्हें पढ़ते हुए इनके वाक्य विन्यास, शब्दों के चयन, विषय वैविध्य, शैल्पिक अनिवार्यता के कायल हुए बिना नहीं रह पाते। साधारण शब्द भी इनकी असाधारण काव्य कौशल की वजह से पाठकों की जुबान पर चढ़ जाते हैं।
डायरी साहित्य की एक प्रमुख विधा है। यह डायरी अगर कोई रचनाकार लिखे तो, उसके लेखन में व्यक्तिगत अनुभवों, सोच और भावनाओं का विशेष होना स्वाभाविक है।
इनकी डायरी ‘आये हैं तो काटेंगे…’ में संकलित गीतों, ग़ज़लों व मुक्तकों में प्रेम के रंग के साथ-साथ घर- परिवार, दोस्ती, वैमनस्य, सामाजिक सरोकार बाजारवाद, पूँजीवाद, पर्यावरण तथा भूमंडलीकर भी रंग देखने को मिलते हैं, जो इनकी प्रतिबद्धता का सबूत है

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संग्रह- मेरी डायरी
आये हैं तो काटेंगे
रचनाकार- दिनेश प्रभात
समीक्षक- डाॅ भावना
प्रकाशन -संदर्भ प्रकाशन,भोपाल
मूल्य-250 रूपये

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