विशिष्ट ग़ज़लकार :: ओम प्रकाश यती

ओम प्रकाश यती की पांच ग़ज़लें

1

जब आएगा कभी ये वक़्त आपदा बनकर
रहेंगे दोस्त मेरे साथ हौसला बनकर
किसी की पूजा से वह क्यों बचे सियासत में
न जाने आएगा कब कौन देवता बनकर
सभी को छोटा समझने से कुछ नहीं होगा
वो आचरण से दिखाए कभी बड़ा बनकर
जब उसको समझा, बहुत देर हो चुकी थी तब
मुझे ही ठगता रहा वो मेरा सगा बनकर
बड़ों ने बातें बताई हैं अनुभवों से जो
वो मेरे साथ हैं जीवन का फ़लसफ़ा बनकर
मुझे दिखाता रहा हर समय मेरा चेहरा
रहा वो साथ हमेशा इक आइना बनकर
बग़ैर उसके न बढ़ती ये ज़िंदगी की ग़ज़ल
वो इसके साथ चला इसका क़ाफ़िया बनकर
2
पहुँचना है जो मंज़िल पर तो चलना भी ज़रूरी है
तरक़्क़ी के लिए घर से निकलना भी ज़रूरी है
ये बाधाएँ बताती हैं कि स्वर्णिम है मेरी मंज़िल
मगर पाने को पार इनसे सम्हलना भी ज़रूरी है
जिसे साकार करने की चुनौती हो तेरे आगे
तेरी आँखों में कोई ख़्वाब पलना भी ज़रूरी है
किसी कोने में दिल के हम रखें आबाद बचपन को
ख़ुशी छोटी सी पाने को मचलना भी ज़रूरी है
तभी तो आस्था सत्कर्म में बढ़ पाएगी उसकी
किया है पुण्य जो उसने वो फलना भी ज़रूरी है
नियति के चक्र की अवहेलना सूरज करे कैसे
निकलना है जो कल उसको तो ढलना भी ज़रूरी है
‘दिया’ बोला हवा, तुम तो अँधेरे में भी चलती हो
मगर लोगों की ख़ातिर मेरा जलना भी ज़रूरी है
नहीं तो दुनिया वाले दिल को पत्थर का बता देंगे
किसी के दर्द से इसका पिघलना भी ज़रूरी है
3
फूस – पत्ते अगर नहीं मिलते
जाने कितनों को घर नहीं मिलते
देखना चाहते हैं हम जिनको
स्वप्न वो रात भर नहीं मिलते
जंगलों में भी जाके ढूँढ़ो तो
इस क़दर जानवर नहीं मिलते
दूर -परदेश के अतिथियों से
दौड़कर क्यों नगर नहीं मिलते
चाहती हैं जो बाँटना ख़ुशबू
उन हवाओं को ‘पर’नहीं मिलते
4
ग़मों के बीच भी ख़ुशियों के अवसर ढूँढ लेते हैं
हम अपने कर्म से अपना मुक़द्दर ढूँढ लेते हैं
क़लमकारों का है अपना अलग लहजा, तभी तो वे
इन्हीं शब्दों में अपने-अपने तेवर ढूँढ लेते हैं
हवा, जल, पेड़ में भी हैं हमारे देवता बसते
हो जिसमें आस्था उसमें हम ईश्वर ढूँढ लेते हैं
बड़ों का साथ मिल जाए तो कुछ होता है हासिल ही
नदी में मिल के झरने भी समन्दर ढूँढ लेते हैं
सभी का सामना होता है जिन चीज़ों से जीवन में
ग़ज़ल के शेर उनमें ही सुख़नवर ढूँढ लेते हैं
थके मज़दूर पाते हैं अगर दो पल भी फ़ुरसत के
नुकीले पत्थरों में भी वो बिस्तर ढूँढ लेते हैं
हुनर होता है कुछ लोगों में ऐसा, हमने देखा है
जहाँ भी काम हो, भाई- बिरादर ढूँढ लेते हैं
अगर हो हौसला दिल में, भरोसा अपने ऊपर हो
तो राहें कामयाबी की हम अक्सर ढूँढ लेते हैं
5
अगर आज रिश्ता निभाता है कोई
तो लगता है जैसे करिश्मा है कोई
कहाँ एक सा हूँ मैं सबकी नज़र में
कोई प्यार करता है, जलता है कोई
बची है तभी मेरी मासूमियत ये
अभी भी मेरे दिल में बच्चा है कोई
मुसीबत में इक अजनबी काम आया
लगा मुझको जैसे फ़रिश्ता है कोई
बताते हो सबको, मुझे भी बताओ
अगर तुमको मुझसे समस्या है कोई
बहुत दिन मुझे ख़ुश नहीं रहने देते
ग़मों का मेरे साथ रिश्ता है कोई
कहाँ पेड़ है वो बसेरा था जिस पर
परेशान कब से परिंदा है कोई
अगर चाह छोड़ें नहीं मंज़िलों की
तो रस्ता भी इक दिन निकलता है कोई
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परिचय : ओम प्रकाश यती की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. लेखन के लिये कई पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैँ

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