विशिष्ट कवयित्री :: डॉ. आशा सिंह सिकरवार

माँ की मौजूदगी कहीं दर्ज नहीं  

  •  डॉ. आशासिंह सिकरवार 

माँ ने कभी भूखा नहीं सोने दिया
अपने बच्चों को
काश !!
बच्चें जान पाते
चंद्रमा – सी गोल रोटी
उसने सब की
थाली में परोसी

उसके हिस्से में केवल चंद्रमा आया
टुकुर-टुकुर देखती रही रात भर
उसने भी कहाँ पूछा
मेरी बहन तू भूखी तो नहीं
जबकि सदियों से बच्चों को
बता रही है चन्दा मामा दूर के……
काश, उसके वश में होता
तो जाकर बैठ जाती उसके भीतर
बूढ़ी दादी बनकर
तब सब होते उसके इर्द गिर्द  नाती पोते
तब खुशी का ठिकाना नहीं होता
यही तो है उसकी  पूरी दुनिया
दुनिया से बाहर हो रही है
बच्चों की अपनी दुनिया है
जिसमें माँ नहीं है न चंदा मामा
माँ की अनुपस्थिति में
कैसे उड़ा रहे हैं निवाला- पे -निवाला
भूख है कि
शांत ही नहीं हो रही

मानो,
माँ पत्थर की मूरत हो गई
मौन के भीतर प्रवेश कर गई
एक दिन
माँ लापता हो गई  घर से
खोजते हुए पहुँचे

मंदिरों में, गिरजाघरों में  ,अजानों में, एक टेक धुनों में
नहीं थी माँ मौजूद कहीं
माँ के ऊपर टिकी है पृथ्वी
फिर भी माँ की मौजूदगी दर्ज नहीं हो रही

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