अंशु केशव की दो ग़ज़लें
1.
अज़ीज़ था मेरा जो नींद से मुझे जगा गया
फिर असलियत में ख़्वाब क्या है ये मुझे बता गया
वो मूरतें बना-बना के तोड़ता चला गया
कुछ इस तरह वो ख़ुद में इक ख़ुदा तलाशता गया
हुआ ये ठीक के सभी गए ब-वक़्त छोड़कर
उन्हीं के साथ मेरे दिल का हर मुग़ालता गया
बना था मेरी ज़िंदगी में जो नमी का इक सबब
वो एक बादल आज मेरा आसमान खा गया
यकीन था मुझे कि फूल-फूल होगी ज़िंदगी
इसी से मैं भी काँटें राह के बुहारता गया
2.
उनके भी दिल को लगता हमसे है एक डर सा
जिनको रखा है हमने अपने दिलो जिग़र सा
कर इस्ते’माल मेरा बस नैपकिन सा फेंका
किस्सा यही है मेरे जीवन का मुख़्तसर सा
जो लोग चाहते थे हों दरमियाँ हमारे
लो हो रहा जतन है उनका भी कारगर सा
करनी मुझे न आईं मक्खन लगा के बातें
सो रह गया हूँ मैं भी बे-स्वाद बे-हुनर सा
कुछ देर साथ चलता गिरने पे थाम लेता
ख़्वाहिश थी कोई मिलता मुझको भी हमसफ़र सा
अंदर है मेरे केवल बेचैनी शोर साज़िश
होने लगा हूँ मैं भी जैसे महानगर सा
लय ताल बिन यूँ मेरा जीवन गुज़र रहा है
जैसे ग़ज़ल का मिसरा कोई हो बेबहर सा
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परिचय : अंजू केशव की एक ग़ज़ल-संग्रह प्रकाशित हो चुका है. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी इनकी रचनायें प्रकाशित होतीरहती हैं. कई संस्थाओं ने इन्हें सम्मानित भी किया है.
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