विशिष्ट कवि : शहंशाह आलम

आहट

मैंने चाँद पर पाँव रखा
फिर बादल पर
फिर दरिया पर
फिर हवा पर
फिर पत्तों पर

सब जगह एक आहट थी
जो मेरे साथ थी
और वह आहट तुम्हारी थी

धूप भी तो बारिश है

धूप भी तो बारिश है
बारिश बहती है देह पर
धूप उतरती है नेह पर

मेरे संगीतज्ञ ने मुझे बताया
धूप है तो बारिश है
बारिश है तो धूप है

मैंने जिससे प्रेम किया, उसको बताया
तुम हो तो ताप और जल
दोनों है मेरे अंदर।

 

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