विशिष्ट कवयित्री :: निवेदिता झा

निवेदिता झा की तीन कवितायें

जब तुम याद आये

जब हुई बारिश

बहनें लगा शहर के पोर पोर से धूल

भरनें लगी नदियाँ

सोधीं खुश्बू से भरा मन

 

जब खिले कुसुम पलाश

पंक्तिबद्ध स्त्रियों नें खेत में किया जलपान

और सब मुस्कुरायीं रोने के बाद

 

जब पहली बार बच्चे को

सिखाया ककहरा

तुतला कर बोला

पढना नहीं अब

 

जब हुई बेटी की विदाई की खरीददारी

साडी चूडी लहठी लहंगे का रंग

बिना मोल मोलाई की मेहंदी

थके नहीं कदम

 

जब खूब भरपेट मिली मिठाई

सुगर के अपनें उम्र की तरह भाव बढे

धुंधला सा लगा सबकुछ

 

जब चित्तौडगढ़ के मीरा मंदिर में

वही आवाज़ फुसफुसाते मिले

बरसानें के घाट की तरह

 

जब एक अनाथालय से

किसी निसंतान नें कमजोर बच्चा गोद लिया

 

हर बार तुम याद आये

 

खेती

वहाँ पोस्ते की खेती होती है

नशा हो जाता है

लोग उन्मादी बन

फिर ज़ेहादी बन

कत्लेआम मचाते हैं

लोग कहते हैं

 

वहाँ खेती रूक जाती है

लोग गले में फंदे लटाका कर

या लाठी खाकर विदा हो जाते है

भूखे का विलाप अलग ही होता है

ये रोती हुई औरते कहती हैं

 

मगर प्रक्रिया चलती ही रहती है

वहाँ फिर एक अध्याय होता है शुरू

धरती की फ़टी चादर को ढंकने का

खाद बीज डालकर

उर्वर कर यथास्थिति लानें का

 

उस शहर में झूठ की खेती होती है

निर्यात भी होता है सामान

बाद में कंक्रीट का जंगल सफेद हो जाता है

ये कोई नहीं कहता

 

जब तक धरती अंतिम सांस न ले ले

खेती तो होती रहेगी यहाँ वहाँ

 

स्मृतियाँ

तुम्हारे हाथों पर

कुछ गीली मिट्टी

और चोटियाँ दो लाल फूल की मेरी

और  वही तीन टाँग की दौड

 

तुम वहाँ ढेंगा पानी में

पत्थर समझ भुरभुरे बिल पर जा बैठे

जिससे निकला केकडा

चार पैर लिए

 

तुम और हम

सोचते थे कि बस सांतवी पास करे

गरमी का मौसम और जामुन का वो भूतहा पेड

सुनसान सी वो मध्य विद्यालय की खिडकियाँ

मांडू के पठार और दूधी नदी

भूगोल के टीचर का ग्रीनलैंड की राजधानी गाटहॉव बतलाना

जैसे बाद में वहीं अमेरिका के राष्ट्रपति बनते

राखी में तुम्हारे हाथों पर गिनती मैं राखियाँ

और बाँटते हम नेग

याद होगी तुम्हें वो मस्जिद

मोबिन दिखला लाया था हमें

और जोडा तालाब में ढूंढते रह गये मूर्तियाँ

नहीं मिले कोई भी आजतक

ईश्वर कि खुदा

 

कितना सूखी हो जाती थी वो जमीनें

और अब ये देखो सारी दुनिया

हरियाली उधार माँग रही

 

पेडों को हम नहीं जीने देते सालोसाल

स्मृतियाँ मगर रहती है बचपन की साथ

बिना पानी खाद के ताउम्र

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परिचय : निवेदिता झा की कविता की पांच पुस्तकें प्रकाशित हैं, जिसमें तीन मैथिली में है. इसके अलावा कई साझा संग्रह भी है.

संप्रति – मनोवैज्ञानिक सलाहकार (दिल्ली)

 

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