लघुकथा :: डॉ.सतीश चंद्र भगत

डॉ.सतीश चंद्र भगत की दो लघुकथाएं

 

दहेज की बलि चढ़ने से बच गई

जब रोज-रोज  पड़ोसी के घर से लड़ाई के स्वर सुनकर विजय का मन खिन्न हो गया.

“तुम्हारे पिता ने दहेज के बचे बांकी रुपये अभी तक नहीं भेजा.” कर्कश आवाज में दिनेश की माँ  बोल रही थी.

“दिनेश भी अपनी माँ के साथ कहने लगा-” बांकी रुपये मिल जाता तो कोई छोटा- मोटा किराने का दुकान ही खोल लेता. घर- गृहस्थी भी ठीक से चल जाता.

“शीला ने कहा – मेरे पिता जी ने जितने रुपये सकारे थे, वह तो दे दिया. लेकिन, आप लोगों का लालच बढ़ता ही जा रहा है. अब मेरे पिता जी के पास और रुपये दहेज के नाम पर देने के लिए नहीं है, जो दे सकेंगे.”

दिनेश ने चटाक- चटाक शीला को चांटा मारा. माँ से जुबान लड़ाती है.  खाना-पीना मत देना माँ.

विजय की कान में सुनाई दी. आज विजय ने थाने को फोन से पड़ोसी दिनेश की शिकायत कर दी.

थोड़ी देर में  पुलिस की गाड़ी दिनेश के दरवाजे पर पहुँच गई. शीला ने पुलिस से ससुराल वालों की दहेज के लिए प्रताड़ित करने की बातें बताई.

दिनेश और उसकी माँ को पुलिस गिरफ्तार कर थाने ले गई.

शीला बोली- “जिस फरिश्ते ने पुलिस को खबर की, उन्हें बहुत- बहुत धन्यवाद! मेरे ससुराल वाले तो मुझे मारने के फिराक में थे.”

इधर विजय जी  मन ही मन खुश थे कि उनके प्रयास से एक बहू दहेज की बलि चढ़ने से बच गई.

 

नई शक्ति का एहसास

देवेन्द्र सोने का प्रयत्न कर रहा थाख् लेकिन नींद उसकी आँखों से गायब हो गई थी. लगातार उसका रक्तचाप घट- बढ़ रहा था. उसे भयंकर आशंका हुई कि कुछ हो न जाए.

“देवेन्द्र की पत्नी मालती ने पूछा कि- क्या हो रहा है? ”

“सहज भाव से देवेन्द्र ने कहा था – कुछ नहीं.”

लेकिन, एकाएक निम्न रक्तचाप के कारण देवेन्द्र की आंखें बंद हुई और वह बेहोश हो गया.

मालती की सेवा के कारण जब देवेन्द्र की आंखें खुली.

तो उसने कहा-” कैसे भूल जाऊँ? उन सारी बातों को.”

“कौन सी बातें?”

“इतने सारे रूपये जो मेरे बचत खाते से निकल गए.”

“अरे छोड़िए, भूल जाइए उन रुपयों को.

जब हमारी किस्मत में होगी तो रूपये पुनः कमा लेंगे.”

“मालती की बातें सुनकर देवेन्द्र को एक नई शक्ति का एहसास हुआ. उसकी चिंता दूर हो गई थी. वह उठ बैठा और अपनी पत्नी से कहा – तुझे विश्वास है तो समय के साथ मेहनत करने से निश्चित ही ईश्वर सभी कुछ पूरा करेंगे.”

चार दिनों के बाद देवेन्द्र स्वस्थ हो गया. वह एक नई ऊर्जा के साथ अगले दिन से अपने काम में लग गया.

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परिचय – डॉ. सतीश चन्द्र भगत वर्तमान समय की विसंगतियों पर सृजन करतें हैं. इनकी लघुकथायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं कें प्रकाशित होती रहती हैं.

संपर्क – बनौली, दरभंगा

 

 

 

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