निवेदिता रश्मि की दो लघुकथाएं

निवेदिता रश्मि की दो लघुकथाएं

किताबें और झुमकें!

इससे बेहतर उपहार भला क्या होगा!

जब किसी को हम कुछ देते हैं तो बस उसका एक जी अर्थ होता है कि वो हमारी भावनाओं को समझे और इस खूबसूरत रिश्ते को सहेज के रखे। झुमके का शौक तो कभी पनपने ही नहीं दिया मैंने ये तुम जानती हो। तुम्हें सजना संवरना बहुत पसंद है, तुम्हें इतराते देख मैं भी जी लेती हूं। पर एक कन्फेशन करना चाहती हूं कि आदमी की बराबरी करने के लिए मैंने अपने हुस्न का किस तरह से कत्ल कर जमींदोज़ कर दिया उसके सिर उठाने से पहले ही। देह से ऊपर चेतना के स्तर तक जीने के लिए उसकी कुर्बानी मुझे ही देनी पड़ी। आदमी के बीच रहते हुए कभी सहजता से अपने को आईने में देखा भी नहीं।

सिर्फ एक उपक्रम था खुद को प्रगतिवादी और सुरक्षित रखने का।

तो झुमका , पायल , बिंदी इन सब के मोह में मैं कभी पड़ी नहीं। लेकिन स्त्री जो भीतर कहीं रहती है, वो तो उसी समर्पण के बहाव में बहती गई और मुखर होती ही रही। जिसने उस स्त्री को जाना है , देखा है वो ही समझ सकता है स्त्री मन, देह और आत्म को। लेकिन तुम्हारे लिए ये झुमके जरूर पहनूंगी !

जीवन में छोटी छोटी बातें जीवन को महका देती हैं।

 

प्रेम, अस्तित्व और शांति

जानते हो वो सुबह कितनी खास थी , हम जिस सुबह मिले थे इस भौतिक संसार में। एक दूसरे के समक्ष हुए थे । तुमने मुझे चारों दिशाओं से आवृत्त कर लिया धीरे धीरे। मानो , तुम्हारी तेजस्विता और ओज का स्रोत मुझसे ही होकर प्रस्फुटित हो रहा हो। मैंने हमेशा आश्चर्य किया! मुझ जैसी औसत , बदतमीज , बेवकूफ लड़की के लिए तुम क्यों अपना सारा समय फूंक रहे हो।

कितना सुंदर उत्तर आया था तुम्हारा!

“सुनो! मैं दुनिया के लिए एक चमक दमक वाला मनुष्य हूं , पर हूं एक अदना सा आदमी! अपने अस्तित्व के लिए अपने आप से लड़ता रहा आज तक!”

तुम आई तो जैसे  मेरे अस्तित्व का हस्ताक्षर बन कर आई। “तुम्हारी समझ, तुम्हारी संवेदना और तुम्हारी उदारता सब मुझे लगता है कि कभी तुमसे प्राप्त हुआ है।” जो बेचैनी थी न! जमाने की विसंगति और स्व का मूल्यांकन अब उससे मुक्त हो गया हूं। तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो खुद को तुम्हारे दृग में देखता हूं तो बहुत आत्मिक संतुष्टि प्राप्त होती है। तुम कभी नहीं समझोगी कि तुम्हारा सानिध्य किस तरह मेरे अशांति को शांति में परिवर्तित करता रहता है। फिर ऐसे बेतुके प्रश्न कभी न करना। मैं सोचती हूं कि कितने प्यार और रोमांच से विधाता ने मेरी जीवन यात्रा लिखी न!

लाख विद्रूपताओं के मध्य तुम्हारा होना इतराने पर बाध्य करता है।

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परिचय :: निवेदिता रश्मि की लघुकथाएं, कहानियां, कविताएं और संस्मरण विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं.

संप्रति – शिक्षिका, समस्तीपुर

 

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