सुभद्रा कुमारी चौहान : एक परिचय :: डॉ श्रीरंग शाही

स्मृतिशेष साहित्यकार डॉ श्रीरंग शाही की जयंती ( 7 फरवरी) पर उनका आलेख
श्रीमती चौहान ओज और वीर रस की गायिका थी। आप वीरों का कैसा हो वसंत और झांसी की रानी कविताओं के लिए प्रख्यात रहीं। आप का जन्म १६०७ ई० में इलाहाबाद के एक सुशिक्षित क्षत्रिय परिवार में हुआ था। आपके पिता जी ठाकुर रामनाथ सिंह प्रसिद्ध संगीत प्रेमी और शिक्षा शास्त्री थे । पिता के व्यक्तित्व का प्रभाव सुभद्रा जी के जीवन पर पड़ा था। मनोविज्ञान कहता है कि पुत्री पिता के व्यक्तित्व से अधिक प्रभावित होती है। श्रीमती चौहान की प्रतिभा का विकास गद्य और पद्य दोनों क्षेत्रों में हुआ था । श्रीमती चौहान की प्रखर, उत्कट और परिष्कृत राष्ट्रीय भावना क विशेष महत्व है। झांसी की रानी कविता में आप ने लक्ष्मीबाई की बोरता और – साहस का उत्कष प्रस्तुत किया है। १८५७ के सिपाही विद्रोह में रानी लक्ष्मीबाई का अन्यतम योगदान था। झांसी की रानी कविता का भाव लोककथा से ही लिया गया है। कवियित्री ने गाया –
बु’देलों हर बोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी बूढ़े भारत में आयी फिर से नई जवानी थी
वीरों का कैसा हो वसंत कविता में आप ने स्वतंत्रता के लिए नव जागरण का नव संदेश दिया है –
‘भर रही कोकिला इधर तान
मारु बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान
मिलने आये हैं आदि अंत
वीरों का कैसा हो वसंत ।
श्रीमती चौहान की कविताओं में दाम्पत्य प्रेम परिणय, वात्सल्य, कारुण्य को भी देखा जा सकता है। श्रीमती चौहान का आगमन छायावाद काल में हुआ। श्रीमती चौहान ने अपने को छायावादी प्रवृति से दूर रखा था। आप की कविताओं में नारी सुलभ ममता, सुकुमारता और करुणा की अभिव्यंजना हुई है।
‘मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी
नन्दन वन-सो फूल उठी वह छोटी – सी कुटिया मेरो
डॉ. नागेन्द्र ने अपने हिन्दी साहित्य का इतिहास में सुभद्रा कुमारी चौहान को राष्ट्रीय भावनाओं की कहानी लेखिका माना है। पापी पेट कहानी को राष्ट्रीय कहानी की संज्ञा दी गई है। बिखरे मोती का प्रकाशन १६३२ और उन्मादिनी का प्रकाशन १६३४ में हुआ था। इन दोनों कहानी संकलनों के आधार पर श्रीमती चौहान को विशिष्ट कहानी लेखिका माना जाता है। श्रीमती चौहान की कविताओं के दो संग्रह हैं – मुकुल और त्रिधारा । मुकुल को १९३२ में साहित्य सम्मेलन का सेकसरिया पुरस्कार मिला था। १२ फरवरी १९४८ ई० में श्रीमती चौहान का निधन कार दुर्घटना में हुआ था। साध श्रीमती चौहान के नितांत वैयक्तिक प्रेम की कविता है। इस कविता में आप ने अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति की है। कवियत्री कहती है-प्रेमी अपने प्रिय पात्र पर एकाधिकार चाहता है।
मृदुल कल्पना के चल पंखों पर हम तुम दानों आसीन ।
भूल जगन के कोलाहल को रचने अपनी सृष्टि नवीन ।
कदम्ब का पेड़ शोषक कविता बात्सल्य रस से ओत-प्रोत है। शिशु अपनी मां से कहता है-
‘तुम घबड़ाकर आँख खोलती फिर खुश हो जाती जब अपने मुन्ने राजा को गोदी में ही पाती
इसी तरह कुछ खेला करते हम तुम धीरे-धीरे ।’
श्रीमती चौहान की प्रशंसा में महाकवि आरसी प्रसाद सिंह ने गाया था-
‘कुंवर सिंह का रक्त तुम्हारी धमनी में संचालित है।
और प्रतापी नर प्रताप की पौरुषधार प्रवाहित है।’
सभा के खेल और सीधे-सादे खेल आपकी बाल उपयोगी रचनाएं हैं।
श्रीमती चौहान की कवितायें देशनुराग से परिपूर्ण हैं। सुभद्रा जी वीर भाव की अकेली कवियित्री हैं। अपने अन्तस के राष्ट्रप्रेम को आत्मा की सम्पूर्ण सच्चाई से व्यक्त कर आप ने देश व्यापी ख्याति पायी थी। झांसी की रानी कविता आप की प्रसिद्धि का आधार है।
‘रानी सोई रनवासों में बेगम गम से थी बेजार
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाजार’
अस्तु, श्रीमती चौहान का हिन्दी काव्य-गगन में राष्ट्रीय काव्यधारा की कवयित्री के रुप में अन्यतम स्थान है।
………………………………………………………………………………

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous post लघुकथा :: शंभुनाथ मिस्त्री
Next post कला का प्रयोजन क्या है :: डॉ सतीश कुमार राय