ब्रज श्रीवास्तव की पांच कविताएं

ब्रज श्रीवास्तव की पांच कविताएं

सच बोला तो..

पहली बार मैंने
सच बोला था
लोग खुश हुए थे.

दूसरी बार बोला तो
कानाफूसी हुई
तीसरी बार बोला
तो मुझे समझाईश दी गई
कम बोलने की.

चौथी बार बोला
तो सब खामोश हो गए

पांचवी बार बोला
तो धमकी दी गई
छठवीं बार बोला तो
मुझे अलग कर दिया गया

सातवीं बार बोला
तो लोगों ने आंखें तरेरीं

आठवीं बार बोला तो
मुझे अपने हाल पर छोड़ दिया गया

 

पिता

आसमान
देखता रहता है चिड़ियाओं को

मछलियों को
अपने भीतर अठखेलियाँ करते हुए देखकर
कंपित होता है तालाब का पानी

पत्ता
हिलने से बचता है
जब उसके बदन पर
ठहरी होती है ओस की बूंद

पहाड़ परवाह करते हैं
उन पर बढ़ते पौधों की.
पिता उसी तरह
बेटियों के लिए
संवेदित रहते हैं
उनका हंसना,देखना
उनके लिए खुशी का सुहाना दृश्य होता है
उनकी उदासी
उन्हें भी उदास कर देती है

आसमान,तालाब,पत्ता
पहाड़ या बगीचा होते हैं
पिता
अपने बच्चों के लिए.

विरोध

उन्हें कौन बताए
विरोध करना
शत्रुता नहीं होती
अपने विचार को ताकत से
रखना होता है

सबसे पहले शोषित ने
विरोध किया फिर
कवि ने विरोध किया
फिर विरोध एक
नीति बनी
फिर लोकतंत्र बना

और लोकतंत्र में हमने
अपने अपने सच के प्रकाश में
एक लोक सच पाया

सभी को विरोध मिला
पर विरोध से जिसने रखा गिला
उसे क्रोध आया
क्रोध से क्रोध मिला
तो युद्ध हूआ
इस तरह वातावरण अशुद्ध हुआ।

यदि विरोध के बिंदुओं पर
विचार हो
तो
ये माहौल धीरे धीरे धीरे
लोकतांत्रिक हो
खुशगवार हो

जैसा मनुष्य को चाहिए
वैसा संसार हो

उसने फिर कहा

उसने फिर कहा
धैर्य रखें
फिर कहा धैर्य रखें
जब भी हमने कामना की
अपने हक़ की
उसने कहा धैर्य रखें
यही काम था
भगवान का

और शैतान का भी
यही स्वभाव था
जो जो भी नहीं लौटाना चाहता था
उसने धैर्य सिखाया
और खुद ने कुछ नहीं सीखा

सरकारों का भी
यही व्यवहार रहा
जनता के लिए

हम जाएंगे हम जाएंगे

रूद्राक्ष लेने
कृपा लेने
भूत हटवाने
जय बोलने
हम जाएंँगे

रोग मिटाने हम तो जाएंगे
हमें न रोको,
हमारी आस्था से खिलवाड़ मत करो
चमत्कार से अभिभूत होने
हम जाएंगे।
राजनीति और समाज ने, संबंधों ने
यहां तक कि स्वयं ने
सभी ने ठगा है हमें
कोई उपाय नहीं हमारे पास
स्थायी रूप से ठगाने के लिए
हम तो जाएंगे.

…………………………………………….

परिचय : ब्रज श्रीवास्तव की ‘तमाम गुमी हुई चीज़ें’, ‘घर के भीतर घर’, ‘आशाघोष’ और ‘समय ही ऐसा है’ कविता संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं. एक कविता संग्रह कहानी रे तुमे का उड़िया में अनुवाद भी हुआ है. इन्हें कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है. ब्रज श्रीवास्तव की रचनायें निरंतर पत्र-पत्रिकाओं में  प्रकाशित होती रहती है.

संप्रति – विदिशा के एक सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापक

पता :  L-40, गोदावरी ग्रींस, विदिशा
Mob.9425034312
7024134312

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous post आखिरी डाक :: आशा पांडेय ओझा
Next post विशिष्ट ग़ज़लकार :: मधुवेश