लघुकथा :: डॉ. सतीश चन्द्र भगत
उसकी व्यथा
-डॉ. सतीश चन्द्र भगत
अजीत ने अपने मित्र संजय से कहा-” बहुत मुश्किल है आज के जमाने में सत्य की राह पर चलना |”
ऐसा क्यों?
अजीत ने कहा-” कल ही की बात है- मेरे पास एक ग्राहक आया और कहा-सर ! कुछ ले दे के लोन दे दिजिए | बड़ी मुश्किल में हूँ |”
मैंने उनसे कहा- हाँ तो ऐसा कीजिए कुछ आवश्यक कागजात बैंक में लेकर कल आइये लोन मिल जाएगा | और हाँ, इसमें रिश्वत देने जैसी कोई बात नहीं है |
तो ग्राहक ने कहा-” सर जी! रिश्वत लेने के लिए ही तो आप कागजात माँग रहे हैं | पहले वाले सर जी इतने कागजात कहाँ मागते थे | “
जानते हो संजय, मेरी सबसे बड़ी समस्या क्या है?
” समय से पहले बैंक जाना| पूरी सत्यता और निष्ठा से अपने कर्त्तव्य का पालन करना और रिश्वत नहीं लेना | “
उसकी व्यथा सुनकर संजय ने कहा-” दरअसल बात यही है कि इस भ्रष्ट जमाने में भी तुम ईमानदारी का सबूत देना चाहते हो मित्र! “
अजीत ने कहा-” हाँ! बिल्कुल सही कहा तुमने |”
संजय ने फिर कहा- ” आज की सोच और लोगों की मानसिकता समझकर अपना काम करोगे तो कोई व्यथा सुनाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी |”
यह सुनकर उसकी व्यथा और बढ़ गई थी |
लेकिन, अजीत सच्चाई छोड़कर जमाने के अनुसार चलना स्वीकार नहीं कर सका |
बहुत अच्छी ई- पत्रिका-* आंच*
स्तरीय एवं पठनीय |
संपादक जी को बहुत- बहुत बधाई!