विशिष्ट गीतकार :: राहुल शिवाय

राहुल शिवाय के पांच गीत

कौन करे पतितों को पावन

बापू!
कैसी थी बतलाओ
आजादी की शाम
आज अलग है
क्या उस दिन से
भारत का परिणाम

सत्याग्रह
ने अर्थ भुलाकर
भीड़तंत्र अपनाया
और अहिंसा
को निर्बलता
का चोगा पहनाया

मढ़ा सत्य के सिर जाता है
रोज़ नया इल्जाम

मुश्किल है
बिखरे टुकड़ों को
अब कुछ भी समझाना
एक नाम है
अल्ला-ईश्वर
यह उनको बतलाना

कौन करे पतितों को पावन
बदल गये हैं राम

कच्चे मन को
अलगावों का पावक
तपा रहा है
स्वर्णिम भारत के
अरमानों ने बस
दंश सहा है

शोषण के चाबुक
से हर दिन
छूट रहा है चाम

गुलाब का कलम

हाथों में
मैंने गुलाब का
कलम रखा है
खोज रहा हूँ
धरती इसको कहाँ रोप दूँ

घर के जिस
कोने में
तुलसी सूख रही है
उस कोने में
क्या यह पोषण
को पायेगा
जिस बरदगद के
नीचे धूप
नहीं आती है
क्या यह
अपनी बाँह
वहाँ पर लहरायेगा

जहाँ सबों ने
अपना-अपना
हरम रखा है
खोज रहा हूँ
धरती इसको कहाँ रोप दूँ

इस घर में
धरती से ज्यादा
चट्टाने हैं,
क्या इसकी
कोमल जड़ को वे
बढ़ने देगें
जहाँ रोज
पत्थर पर पत्थर
बोते हैं सब
वहाँ इसे क्या
कोमल मन को
गढ़ने देंगे

जहाँ हृदय ने
कृत्रिमता का
भरम रखा है
खोज रहा हूँ
धरती इसको कहाँ रोप दूँ

दिल्ली कितनी दूर

पता चला
दिल्ली में रहकर
दिल्ली कितनी दूर

बस, मेट्रो
पैदल, ऑटो से
दिन-दिन भर का चक्कर
सिर्फ़ डिग्रियाँ
काम न आतीं
बोल रहे हैं दफ़्तर

कोर्स सभी
ठिगने लगते हैं
मन लगता मजबूर

चमगादड़
बनकर महँगाई
मँडराती है सिर पर
और हाँफती
साँसें जीतीं
लम्हा-लम्हा डरकर

सपनों को
आधा कर देना
दिल्ली का दस्तूर

रात-रात भर
जगती रातें
रेस खत्म कब होती
दिल्ली मुश्किल
से ही दो पल
कभी नींद में सोती

लेकिन दिल्ली
में रहना भी
देता एक गुरूर

स्वार्थ के जूते

जी रहे
परछाइयों को
बुर्ज के नीचे खड़े

कौन पूछे
प्रश्न
बातें शीर्ष तक जाती नहीं हैं
और आवाजें
कभी भी
लौट कर आती नहीं हैं

स्वार्थ के
जूते हुए अब
ज़िन्दगी से भी बड़े

सिर्फ़ ढलता
सूर्य हमको
हर तरफ देता दिखाई
सीढ़ियाँ
दो-चार चढ़कर
हाँफने लगती कमाई

हम दिहाड़ी
जोड़ने को वक्त से
हर पल लड़े

मेघ भी
सागर तटों को
दे रहे केवल सलामी
नद, नदी
भी चाहते हैं
धूप की करना गुलामी

रोज़ रेगिस्तान
में हम
ढो रहे अपने घड़े

मजदूर औरतें

सपनों की दुनिया से
रहकर दूर औरतें
कितना कुछ सहती है
ये बेनूर औरतें

जिनके करतल पर
अंकित है विश्व सृजन का
खोज रही वह हर दिन
मजधारों में तिनका
फिर भी जीवन
भर रहती मजबूर औरतें

बच्चे का मुख
सीने पर अंगिया-सा रखना
रोज लकड़बग्घे से लड़ना
कभी न झुकना
पाती है क्या
हर दिन दुख से चूर औरतें

धारदार कटिया से
घास काटने वाली
मीलों मील दूरियां रोज
पाटने वाली
दुनिया नयी
रचेगी ये मजदूर औरतें

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परिचय : राहुल शिवाय गीतकार हैं. इनकी रचनायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं

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