विशिष्ट गीतकार :: गरिमा सक्सेना

गरिमा सक्सेना के पांच गीत

(1)

दुहरापन जीते हैं
झेल रही है
नयी सदी यह
मन-मन की संवादहीनता
मन पर हावी हैं इच्छाएँ
अस्त-व्यस्त ये दिनचर्याएँ
छीन रही है
सुख का अनुभव
जीवन की संवादहीनता
आभासी दुनिया के नाते
पल में आते, पल में जाते
दिल से दिल को
जोड़ न पाती
धड़कन की संवादहीनता
कैसा दुहरापन जीते हैं
संबंधों से हम रीते हैं
बाँट रही
मन के आँगन को
आँगन की संवादहीनता
(2)
हम ज़िंदा हैं
हममें ज़िंदा रहा कबीर
जब सब चुप थे
हम शब्दों की धार रहे
कभी बने हम ढाल
कभी तलवार रहे
हम ज़िंदा हैं
हमने सही पराई पीर
हम साखी में,
सबद, रमैनी, बातों में
आदमजात रहे
सारे हालातों में
हम ज़िंदा हैं
हममें है नदिया का तीर
मगहर हैं हम,
आडंबर, पाखंड नहीं
पूरी धरती हैं
सीमित भूखंड नहीं
हम ज़िंदा है
कर्म हमारी है तक़दीर
(3)
ख़ुद ही लड़ना है
क्यों आक्रोश हमारे मन का
है अवचेतन में
अब तक होती आयीं हैं बस
बड़ी-बड़ी बातें
खाली पेट टटोल रही हैं
जगी हुई रातें
सुख की छाती फटी रह गई
है हर सावन में
हम गज ऐसे, जंजीरों को
तोड़ नहीं पाते
करते नहीं प्रयत्न, हार
पर केवल पछताते
लगे हुए हम पीड़ाओं के
मात्र प्रदर्शन में
कौन लड़ा है किसकी ख़ातिर
ख़ुद ही लड़ना है
हमको मरुथल के सीने पर
जल-सा बहना है
कबतक केवल रत्न जड़ेंगे
हम सिंहासन में
(4)
ख़ुशियों का चूना झड़ता है
कोने में चुपचाप खड़ा है
घर हो गया पुराना खँडहर
तुलसी का चौरा सूना है
यादों पर मकड़ी के जाले
ख़ुशियों का चूना झड़ता है
दरकीं नेहमयी दीवालें
वो दरवाज़ा, खिड़की, आँगन
रोता ‘आ जाओ’ यह कहकर
जहाँ कभी महकी फुलवारी
बजते थे चूड़ी औ कंगन
जहाँ कभी गूँजी किलकारी
खेले संग बुढ़ापा बचपन
वहाँ घड़ी स्तब्ध खड़ी है
दर्पण भी सोया है थककर
कुआँ स्वयं प्यासा आँगन का
तुलसी सूखी, ना हरियाती
होली, दीवाली सब काली
साँझ न पाती दीया बाती
कौवे, उल्लू, झींगुर बोलें
घर भी जाता है अक्सर डर
(5)
सूर्य उगाना होगा
कबतक हम दीपक बालेंगे
हमको सूर्य उगाना होगा
बदल-बदल कर वैद्य थक गये
मिटी नहीं अपनी पीड़ाएँ
सहने की आदत ऐसी है
टूट गईं सारी सीमाएँ
पीड़ाओं में प्रतिरोधों का
स्नेहिल लेप लगाना होगा
किश्तों में बँट गई एकता
ख़ुद का रस्ता रोक रहे हैं
बहकावे को सत्य मानते
कहाँ झूठ को टोक रहे हैं
भेद-भाव को भूल हृदय का
मानव आज जगाना होगा
बातों से संतुष्ट हो रहे
लगता है अभिशापित जीवन
पल भर की झुंझलाहट को हम
मान रहे कबसे आंदोलन
मन की आँच रहे ना मन में
हमको तन सुलगाना होगा
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परिचय – गरिमा सक्सेना के पांच गीत और दोहा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. ये उ. प्र. हिंदी संस्थान द्वारा बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार, हिन्दुस्तानी अकादमी इलाहाबाद द्वारा युवा लेखन कविता सम्मान, नवगीत साहित्य सम्मान (नवगीतकार रामानुज त्रिपाठी स्मृति) सहित दर्जनों संस्थाओं से सम्मानित हो चुकी हैं
वर्तमान संपर्क : मकान संख्या- 212 ए-ब्लाॅक, सेंचुरी सरस अपार्टमेंट, अनंतपुरा रोड, यलहंका, बैंगलोर, कर्नाटक-560064
मो : 7694928448
ईमेल-garimasaxena1990@gmail.com

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