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 इंटरनेट वाला प्यार :: सुभाषिणी कुमार

 इंटरनेट वाला प्यार

  • सुभाषिनी कुमार

कई बार ऐसा होता है कि हमारी खुशी हमारे आस पास ही होती है लेकिन वो हमें दिखती नहीं। मैं बा शहर के एक छोटे से गाँव नुकूलोआ में रहने वाली एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की हूँ। आज भी कुछ जगहों में लड़कियों को प्यार करने की आजादी नहीं होती और उन्हें अपने प्यार को भुलाना पड़ता है। इसी के डर से मुझमें कभी किसी लड़के से बात करने की हिम्मत नहीं हुई। यदि कोई लड़का सामने आ जाता तो उसे हल्की सी मुस्कुराहट देकर मैं चुपचाप वहाँ से चली जाती। मेरे माता-पिता बहुत ही सख्त थे। उनका मानना था कि लड़कियों को कम उम्र में मोबाईल फोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और इसी वजह से हमारे पास मोबाईल फोन नहीं था।

एक दिन मेरी माँ को बुआ की बेटी की शादी में शामिल होने के लिए विदेश जाना पड़ा और केवल इस वजह से पापा ने मुझे मोबाईल फोन लेकर दिया ताकि हम माँ से बात चित कर सके। हम तीन भाई बहन थे जिनमें से मैं ज्यादा जिनमेदार और समझदार थी इसलिए पापा ने फोन मुझे दिया। फेस्बूक के द्वारा माँ से बात करना ज्यादा आसान था इसलिए मैंने फेस्बूक पर अपना एक अकाउंट खोला और माँ को फ्रेंड रीक्वेस्ट भेजा। उन्होंने तुरन्त मेरा रीक्वेस्ट एक्सेप्ट किया और मुझे फोन किया। हमने बहुत सारी बातें की और माँ को कुछ जरूरी काम याद आ गया था इसलिए उन्होंने फोन रख दिया। मैं खाली बैठी थी इसलिए फेस्बूक यूज़ करने लगी। मेरे काफी दोस्त और क्लास्मेट्स जो मेरे साथ पड़ते थे वो फेस्बूक पर थे उन लोगों ने मुझे देखा और तुरन्त मुझे फ्रेंड रीक्वेस्ट भेजा। मैंने सभी के रीक्वेस्ट को एक्सेप्ट कर लिया। थोरी देर बात मेरे साथ में पड़ने वाले एक लड़के ने मुझे मैसेज किया और मैंने उसे रिप्लाइ भी किया। हमसाथ में पड़ते जरूर थे लेकिन पहले हमारे बीच कभी कोई बात नहीं हुई थी। यह हमने पहेली बार एक दूसरे से बात की थी और वो भी फेस्बूक के द्वारा। हम कुछ ही दिनों में एक दूसरे के साथ काफी घुल मिल गए थे। जब हम स्कूल जाते तो मैं उसकी तरफ आख उठाकर भी नहीं देखती थी न जाने क्यों मुझे शरम सी आती थी।

हम देर रात तक फेस्बूक पर चैट करते और कभी-कभी तो सुबह हो जाती थी। अब तो एक दिन भी उससे बात किए बगैर रहा ही नहीं जाता था। मुझे उसकी आदत हो गई थी। ये दोस्ती प्यार में कब बदल गई पता ही नहीं चला। मुझे उससे प्यार हो गया था लेकिन न जाने एक डर सा लगा रहेता था। एक सवाल था मन में कि क्या वो मेरे लिए भी वही महसूस करता है जो मैं उसके लिए करती हूँ? वो हमेशा मुझसे पूछता रहता था कि क्या मेरी ज़िंदगी में कोई है?। मैं हमेशा मना कर देती थी लेकिन इस बार जब उसने पूछा तो मज़ाक-मज़ाक में मैंने कहे दिया कि तुम हो मेरी ज़िंदगी में। मेरे इतना कहेते ही उसने मुझसे अपने प्यार का इज़हार कर दिया। मैं बहुत देर तक खामोश रही और फिर चुप चाप फोन काट दिया। समझ में ही नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। मैंने बहुत हिम्मत करते हुए पहेली बार उसे फोन किया। उसने मेरा फोन तुरन्त उठा लिया और हमने हमारी भावनाओं को एक दूसरे के साथ साझा किया। इसके बाद हमनें हमारे रिश्ते को दोस्ती से हटाकर प्यार का नाम दे दिया।

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